________________ 45. 170 जैन धर्म में पर्याय की अवधारणा 43. विभाव व स्वभाव व्यञ्जन पर्यायें कितनी-कितनी देर टिकती हैं ? विभाव व्यञ्जन पर्यायें अन्तर्मुहूर्त से लेकर सागरों पर्यंत टिकती हैं, जैसे निगोदिया पर्याय व सर्वादेव पर्याय / स्वभाव व्यञ्जन पर्याय सदा एक-सी रहती हैं, बदलती नहीं, न ही वहाँ प्रदेशों में परिस्पन्दन होता है, जैसे सिद्ध पर्याय या धर्मास्तिकाय का आकार / 44. विभाव व स्वभाव अर्थ पर्याय कितनी-कितनी देर टिकती हैं ? विभाव अर्थ पर्याय कम से कम क्षुद्र अन्तर्मुहूर्त और अधिक से अधिक कुछ बड़ा अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त ही टिकती हैं। जैसे सूक्ष्म व स्थूल क्रोध / स्वभाव अर्थ पर्याय केवल एक समय स्थायी है। विभाव अर्थ पर्याय तो छद्मस्थ ज्ञान गम्य होती है ? हाँ अन्तर्मुहूर्त स्थायी होने से क्रोधादि विभाव अर्थ पर्याय स्थूल व छद्मस्थ ज्ञान गोचर होती हैं, और इसलिए उन्हें भी कदाचित व्यञ्जन पर्याय कहा जा सकता है, पर रूढ़ न होने से उसके लिए उस शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता / 46. एक समय स्थायी पर्याय कैसी होती है ? वह केवल ज्ञान गम्य ही है तथा अत्यन्त सूक्ष्म / षट्गुण हानि वृद्धि ही उसका रूप है। 47. षट्गुण हानि वृद्धि किसे कहते हैं ? अगुरुलघुत्व गुण के कारण गुणों में जो निरन्तर परिणमन होता रहता है वही षट्गुण हानि वृद्धि का वाच्य है / गुणों के अविभाग प्रतिच्छेदों में अन्दर ही अन्दर बराबर घटोतरी बढ़ोतरी द्वारा सूक्ष्मतरतमता आते रहना ही उसका रूप है / 48. यह सूक्ष्म अर्थ पर्याय स्वाभाविक होती है या विभाविक ? सूक्ष्म अर्थ पर्याय शुद्ध पर्याय शुद्ध द्रव्यों में ही होती है, अशुद्ध में नहीं, अतः वह स्वभाव अर्थ पर्याय है। 49. विभाव अर्थ पर्याय भी तो प्रति क्षण बदलती ही होगी ? बदलती अवश्य है, पर वह रूढ़ नहीं है / 4. सादि सान्तादि पर्याय 50. आदि अन्त की अपेक्षा पर्याय के कितने भेद हैं ? चार भेद हैं - सादि सान्त, आदि अनन्त, अनादि सान्त, अनादि अनन्त / 51. सादि सान्त पर्याय किसे कहते हैं ? जिस पर्याय का आदि भी हो और अन्त भी, जैसे हर्ष, विषाद आदि /