Book Title: Jain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Author(s): Siddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 147
________________ 137 पर्याय मात्र को ग्रहण करने वाला नय : ऋजुसूत्रनय इस प्रकार ऋजुसूत्रनय केवल वर्तमान क्षणवर्ती पर्याय मात्र को ही ग्रहण करता है / ऋजुसूत्रनय के भेद : आचार्य सिद्धसेन के अनुसार ऋजुसूत्रनय ही पर्याय नय का मूल आधार है और शब्द आदि नय तो उस ऋजुसूत्र की ही उत्तरोत्तर सूक्ष्म भेद वाली शाखायें-प्रशाखायें हैं / 20 कालकृत भेद का अवलम्बन लेकर वस्तुविभाग का आरम्भ होते ही ऋजुसूत्रनय माना जाता है और वहीं से पर्यायास्तिक नय प्रारम्भ समझा जाता है। अतः सिद्धसेन ने यहा पर ऋजसत्रनय को पर्यायास्तिक नय का मल आधार कहा है। बाद के शब्दादि जो तीन नय हैं, वे यद्यपि ऋजुसूत्र नय का अवलम्बन लेकर प्रवृत्त होने से उसी के भेद है, तथापि ऋजुसूत्र आदि चारों नय पर्यायास्तिक नय के प्रकार कहे जा सकते हैं / शब्द आदि तीन नय मात्र वर्तमानकाल स्पर्शी ऋजुसूत्रनय के आधार पर उत्तरोत्तर सूक्ष्म विशेषताओं को लेकर प्रवृत्त होते हैं और इसीलिए ये सब उसी के विस्तार हैं / ऋजुसूत्र नय एक वृक्ष जैसा है, तो शब्दनय उसकी शाखाडाल है, समभिरूढ़ उसकी प्रशाखा-टहनी है और एवंभूत उस टहनी की भी प्रतिशाखा सबसे छोटी और पतली शाखा है / 21 धवला के अनुसार विषयभेद से ऋजुसूत्रनय के भी दो भेद हो जाते हैं२२ -- 01. सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय (शुद्ध ऋजुसूत्र नय) 02. स्थूल ऋजुसूत्रनय (अशुद्ध ऋजुसूत्र नय) 01 सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय (शुद्ध ऋजुसूत्रनय) सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय सूक्ष्म सत् की स्वतंत्र सत्ता को विषय करता है / निरवयव एक प्रदेशी तथा एक सूक्ष्म समय स्थायी तथा स्वलक्षणभूत स्वभाव स्वरूप, व्यक्ति की स्वतंत्र सत्ता देखने वाली दृष्टि को सूक्ष्मऋजुसूत्रनय कहते हैं / वीरसेनाचार्य के अनुसार अर्थ पर्याय को ग्रहण करने वाला शुद्ध ऋजुसूत्रनय प्रत्येक क्षण में परिणमन करने वाले समस्त पदार्थों को विषय करता हुआ अपने विषय से सादृश्य सामान्य और सद्भाव रूप सामान्य को दूर करने वाला है / 23 देवसेनाचार्य कहते हैं कि जो द्रव्य में एक समयवर्ती ध्रुव पर्याय को अर्थात् द्रव्य की केवल एक समय प्रमाण स्थिति को ग्रहण करता है, वह सूक्ष्मऋजुसूत्र है, जैसे-सर्व ही शब्द क्षणिक हैं / 24 वे आलापपद्धति में कहते हैं कि जो नय एक समयवर्ती पर्याय को विषय करता है, वह सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय है / 25 देवसेनभट्टारक मानते हैं कि द्रव्य में समयमात्र रहने वाली पर्याय को जो नय-ग्रहण करता है, वह सूक्ष्मऋजुसूत्रनय कहा गया है। जैसे - सर्वक्षणिक है / 26 वे आगे कहते हैं कि प्रति समय प्रवर्तमान अर्थपर्याय में वस्त परिणमन को विषय करने वाला सक्ष्म ऋजुसूत्रनय है। अर्थपर्याय की अपेक्षा समयमात्र काल है / 27 माइल्लधवल के अनुसार जो द्रव्य में एक समयवर्ती अध्रुवपर्याय को ग्रहण करता है, उसे सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय कहते हैं, जैसे सभी शब्द क्षणिक हैं / 28 भावार्थ यह है कि जो द्रव्य की भूत और भावी पर्यायों को छोड़कर जो वर्तमान पर्याय को ही ग्रहण करता है, उस ज्ञान और वचन को ऋजुसूत्रनय कहते हैं / प्रत्येक वस्तु प्रति समय परिणमनशील

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