________________ सत्ता का द्रव्यपर्यायात्मक पर्याय 105 पूर्णतः नवीन पदार्थ की उत्पत्ति सिद्ध नहीं करता, बल्कि इसके द्वारा पूर्वोत्तर पर्यायों रूप से परिणमनशील एक अन्वयी द्रव्य की सिद्धि होती है / यह अन्वयी द्रव्य उत्तरवर्ती क्षण में पूर्णरूपेण विलक्षण स्वरूप से उत्पन्न नहीं होता, बल्कि वह अपने सामान्य रूप से निरन्तर विद्यमान स्वरूप की नयी विशेष पर्याय को प्राप्त करता है / मृत्तिका घट रूप से नष्ट हो रही वस्तु मृत्तिका कपाल रूप से उत्पन्न होती है, जो मृत्तिकात्व सामान्य रूप से सत् तथा कपाल रूप से असत् पर्याय की उत्पत्ति है / यदि सत्ता को उत्पाद व्यय और ध्रौव्य स्वरूप स्वीकार न करके पूर्णरूपेण क्षणिक ही स्वीकार किया जाय तथा उसके निरन्वय विनाश पूर्वक उससे उत्तरक्षणवर्ती पदार्थ की उत्पत्ति मानी जाय तो प्रश्न उठता है कि एक पूर्णरूपेण क्षणिक पदार्थ की कार्योत्पत्ति के समय सत्ता नहीं होने के कारण उसे अर्थक्रियाकारी किस प्रकार कहा जा सकता है ? कारण वही होता है, जिसके होने पर ही कार्य की उत्पत्ति हो तथा जिसके अभाव में कार्योत्पत्ति कभी नहीं हो / एक क्षणिक पदार्थ अपने सद्भाव काल में कार्य को उत्पन्न कर नहीं सकता, क्योंकि इस समय वह स्वयं स्वरूप लाभ कर रहा है, यदि उसी समय उससे कार्योत्पत्ति स्वीकार कर ली जाये तो सभी कार्य एक क्षणवर्ती हो जायेंगे तथा अगले क्षण शून्यता की प्राप्ति होगी; अगले क्षण में भी क्षणिक पदार्थ द्वारा कार्योत्पत्ति सम्भव नहीं है, क्योंकि उस समय उसका निरन्वय विनाश हो जाने से पूर्णतया अभाव है। कार्योत्पत्ति की सामर्थ्य एक विद्यमान पदार्थ में ही होती है। जो पदार्थ कार्योत्पत्ति के समय विद्यमान नहीं है, वह कार्योत्पादक किस प्रकार हो सकता है ? यदि कहा जाय कि पूर्वक्षणवर्ती पदार्थ के निरन्वय विनाशपूर्वक उससे ही उत्तर क्षण में कार्योत्पत्ति होती है, तो जब असत् कारण से अनन्तरवर्ती क्षण में कार्योत्पत्ति हो सकती है तो उससे सुदूरवर्ती क्षण में भी कार्योत्पत्ति हो जानी चाहिए, जैसे चिरविनष्ट पति से भी विधवा को गर्भ की प्राप्त हो जानी चाहिए, क्योंकि अनन्तरवर्ती और सुदूरवर्ती दोनों ही क्षणों में कारण का अभाव समान रूप से विद्यमान है / 26 वस्तुः कार्योत्पत्ति की प्रक्रिया शून्य में घटित नहीं होती, बल्कि कार्योत्पत्ति के समय विद्यमान उपादान कारण रूप में परिवर्तित होता है। इसलिए पूर्व पर्याय युक्त द्रव्य का उपादान कारण होता है, जो अपनी उपादान योग्यता और निमित्त कारणों के सद्भावानुसार द्रव्य रूप से वही रहते हुए पूर्व पर्याय रूप से नष्ट होकर उत्तर पर्याय रूप से उत्पन्न होता है / 27 पर्याय शक्ति विशिष्ट द्रव्यशक्ति को द्रव्य की उपादान योग्यता कहा जाता है। एक द्रव्य में अपने सामान्य स्वरूप के अनन्त विशेष स्वरूपों में अभिव्यक्ति की शाश्वत सामर्थ्य विद्यमान है, जिसे द्रव्य शक्ति कहा जाता है / इस द्रव्य शक्ति के द्रव्य में सदैव विद्यमान होने पर भी द्रव्य किसी भी समय किसी भी पर्याय को प्राप्त नहीं कर सकता। इसके विपरीत अव्यवहित उत्तर क्षण में द्रव्य में परिणमन की सम्भावनाएं उसके पूर्ववर्ती पर्याय के विशिष्ट स्वरूप के अनुसार निर्धारित होती हैं / इन सम्भावनाओं में से जिस पर्याय की प्राप्ति के लिए अनिवार्य विभिन्न कारणों का सद्भाव होता है, द्रव्य उस पर्याय रूप में परिणमित हो जाता है / 38 उदाहरण के लिए मृत्तिका कण में अवस्थित पुद्गल द्रव्य में अपने रूपरसगन्धस्पर्शमय सामान्य स्वरूप की समस्त विशिष्ट अभिव्यक्तियों को प्राप्त करने की द्रव्यशक्ति विद्यमान है। इस शाश्वत द्रव्य शक्ति से सम्पन्न होने पर भी वह द्रव्य अपने वर्तमान कालीन मृत्तिका कण रूप विशेष स्वरूप के कारण अव्यवहित