Book Title: Jain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Author(s): Siddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 15
________________ नय, अनेकान्त और विचार के नियम के कारण हुआ है। इसलिए ये दो पर्याय हैं / एक शब्द इन दोनों पर्यायों का वाचक नहीं हो सकता। हर पर्याय की अभिव्यक्ति के लिए एक नए शब्द की अपेक्षा होती है। शब्द अर्थ का बोध कराने के लिए जिस समय अर्थक्रियाकारी हो, उसका जो पर्याय विद्यमान हो, उसका वाचक शब्द सम्यक् अर्थ ज्ञान करा सकता है। मनुष्य शब्द के द्वारा मनुष्य संज्ञक अर्थ का बोध होता है / शब्द नय की दृष्टि में यह सम्यक् प्रयोग है / एवंभूत नय अर्थक्रियाकारी पर्याय को ग्रहण करता है, इसलिए मनन क्रिया के अभाव में मनुष्य नामक प्राणी को मनुष्य नहीं मानता / जो मनन करता है, वह मनुष्य है, इसलिए मनुष्य शब्द मनन क्रिया के क्षण में मनुष्य का वाचक बनता है / घट का उदाहरण भी प्रस्तुत किया जा सकता है / शब्द नय की विचारणा में एक निश्चित आकार वाला मिट्टी का पात्र घट कहलाता है / जलाहरण और जलधारण की क्रिया में जो प्रवृत्त नहीं है, एवंभूत नय, उसे घट शब्द का वाच्य नहीं मानता / शब्द नय - घट घट है, भले फिर वह जलाहरण की क्रिया में प्रवृत्त हो या नहीं / एवंभूत नय - घट इसलिए घट है कि वह जलाहरण की क्रिया कर रहा है / जिस क्षण वह जलाहरण की क्रिया नहीं कर रहा है, उस समय वह घट नहीं है। एवंभूत नय का दृष्टिकोण अर्थज्ञान का विशुद्ध दृष्टिकोण है। उसके आधार पर रुढि से मुक्त होकर, गतिशील चिन्तन का विकास किया जा सकता है / विचार के नियम नय के आधार पर विचार के आठ नियम बनते हैं - 1. द्रव्य वास्तविक है / उसी के आधार पर विचार का विकास हुआ है / 2. द्रव्य शून्य विचार अवास्तविक है। उसे कल्पना से अधिक महत्त्व नहीं दिया जा सकता / जिसका . अर्थक्रियाकारित्व स्पष्ट है, उसे काल्पनिक नहीं माना जा सकता / समग्र द्रव्य को जाना नहीं जा सकता-द्रव्य के सब पर्यायों को एक साथ जानने की हमारे ज्ञान में सामर्थ्य नहीं है। समग्र द्रव्य को अभेद वृत्ति और अभेदोपचार से ही जाना जा सकता है / द्रव्य को साक्षात् जानने का सामर्थ्य नहीं है। उसे पर्याय के माध्यम से ही जाना जा सकता है। एक समय में एक पर्याय को ही जाना जा सकता है। एक पर्याय के ज्ञान के आधार पर भावी अनन्त पर्यायों की व्याख्या नहीं की जा सकती, इसलिए सापेक्ष सत्य की व्याख्या करना उचित है / __ अस्तित्व निरपेक्ष सत्य है / उसका पर्याय के आधार पर अनुमान किया जा सकता है, किन्तु उसका साक्षात् ज्ञान नहीं किया जा सकता / ॐ ॐ ॐ ॐ

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