Book Title: Jain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Author(s): Siddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 13
________________ नय, अनेकान्त और विचार के नियम द्रव्य के पर्यायांश में सत् और असत् दोनों की व्यवस्था है। वर्तमान पर्याय सत् है / भूत और भावी पर्याय असत् हैं / इस सत्-असत् की सापेक्षता का विचार के विकास में बहुत योगदान है। द्रव्य में दो प्रकार की क्रियाएं होती हैं - 1. प्रतिक्षण होने वाली क्रिया - इसके अनुसार निरन्तर परिवर्तन होता है / पहले क्षण में जो है, दूसरे क्षण में वह नहीं होता, उसका नय रूप बन जाता है। इस परिवर्तन का नाम है अर्थपर्याय / 2. दूसरी क्रिया क्षण के अन्तराल से होने वाली क्रिया है / इसकी संज्ञा व्यञ्जनपर्याय है। अर्थपर्याय सूक्ष्म और क्षणिक होता है / व्यञ्जनपर्याय स्थूल और दीर्घकालिक होता है / अर्थ पर्याय द्रव्य को दूसरे क्षण के सांचे में ढालने का काम करता है। परिवर्तन के बिना पहले क्षण का द्रव्य दूसरे क्षण में अपने अस्तित्व को टिकाए नहीं रख सकता, इसलिए दार्शनिक दृष्टि से अर्थ पर्याय का कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण है। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य - ये तीनों समन्वित होकर सत् का बोध कराते हैं / इनका विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि ध्रौव्य की दृष्टि में असत् कुछ भी नहीं है / असत् से सत् उत्पन्न नहीं होता। असत् कभी सत् नहीं बनता और सत् कभी असत् नहीं बनता / उत्पाद-व्यय की दृष्टि में सत् असत् की व्याख्या कारण-कार्य सापेक्ष है। जो कारण रूप में सत् और कार्य रूप में असत् है, वह सत्-असत्कार्यवाद है / मिट्टी के परमाणु-स्कंध मिट्टी के रूप में सत् हैं और घट के रूप में असत् / मिट्टी का घट बन जाता है, तब असत् से सत् के निर्माण का सिद्धान्त प्रतिपादित किया जा सकता है। जैन चिन्तन में असत् कार्यवाद और सत् कार्यवाद ये दोनों विकल्प मान्य नहीं हैं। तीसरा विकल्प-सत्-असत्-कार्यवाद को मान्य किया गया। निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है, द्रव्यार्थिक नय को असत् कार्यवाद और सत् कार्यवाद दोनों मान्य नहीं हैं। कारण-कार्य का नियम पर्याय पर ही लागू होता है। पर्यायार्थिक नय कारण की दृष्टि से सत् और कार्य की दृष्टि से असत्-दोनों को मान्य कर सत्-असत् कार्यवाद की स्थापना करता है। नित्य-अनित्य नित्य और अनित्य के विचार का आधार सत् और असत् है / सत् का एक अंश है ध्रौव्य / उसका कभी उत्पाद और व्यय नहीं होता, इसलिए वह नित्य है / सत् का दूसरा अंश है पर्याय / उसमें उत्पाद-व्यय दोनों होते हैं, इसलिए वह अनित्य है / ध्रौव्य पर्याय से वियुत नहीं होता और पर्याय ध्रौव्य से वियुत नहीं होते, इसलिए सत् अथवा द्रव्य नित्यानित्य होता है / केवल नित्य और केवल अनित्य के आधार पर सत् व्याख्येय नहीं है / आकाश सत् है, इसलिए वह केवल नित्य नहीं है / पर्याययुत् होने के कारण वह अनित्य भी है। घट एक पर्याय है, इसलिए वह अनित्य है, किन्तु वह जिन परमाणुओं से बना है, वह परमाणुपुञ्ज सत् है, इसलिए घट नित्य भी है /

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