Book Title: Jagadguru evam Gurugunratnakar Kavyam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
३४
श्रीपद्मसागरगणिविरचितंसर्वोर्थिविशेषसंगमवशात्तत्रोर्दुरेसा व्यधा
देवं त्वां स्तवनं नयन्ति विबुधाः श्रीहीरभट्टारक ! ॥२३२।। मालाख्ये पुरे मोदादेवं काव्यं जगद्गुरोः ।
चकार सर्वसिद्ध्यर्थ पण्डितः पद्मसागरः ॥२३३ ।। इति महोपाध्यायश्रीधर्मसागरगणिपण्डितोत्तंसप-श्रीविमलसागरगणिशिष्यपं-पद्मसागरगाणाविरचितं जगद्गुरुकाव्यं संपूर्णम् । लिखितं मङ्गलपुरे संवत् १६४६ वर्षे द्वितीयभाद्रपदसित ११ दिने ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138