Book Title: Jagadguru evam Gurugunratnakar Kavyam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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गुरुगुणरत्नाकरकाव्यम् । स्पट्टाऽलङ्कृतयोऽत्र सोमतिलका भट्टारका भ्रजिरे ॥४५॥ सूरीन्द्रानणहिल्लपाटकपुरे यान् गुगडीपल्वलो
पान्तस्थान प्रणतः समोदमुदयीपा नाम योगी तदा । पृष्टः श्राद्धवरैरवक् स च ममेत्युक्तं हि सिद्धिपदाअत्रैते पुरुषोत्तमाः कषयरीपाख्येन नाथेन तत् ॥ ४६॥
श्रुत्वेति योगिगदितं मुदितरशेषैः ___ सबैर्विशेषतरभक्तिरकारि येषाम् । वेऽवाप्तसोमतिलकाऽमलपट्टपद्माः
श्रीदेवसुन्दरगणप्रभवो बभूवुः ।। ४७॥ अथ परमगुरुश्रीसोमसुन्दरसूरीश्वराणां कतिपयगुणवर्णनम्सुरनरविभुवन्यश्रीजयानन्दमूरि
प्रवरकरसरोजात् संमदात् सोत्सवं यः। रुचिरचरणलक्ष्मीरात्मसाद् निर्ममेऽद्रि
ज्वलनजलधिधात्रीवत्सरे विक्रमार्कात् ।। ४८॥ वदनु निजतनोर्ये यत्यजेयं प्रमाद
द्विषमतुषमनीषोत्कर्षतोऽपास्य दूरम् । बभुरिह गुरुराजज्ञानयुक्सागराङ्गा
ऽस्मयविनयसपर्याऽवाप्तविश्वाप्तविद्याः ॥४९॥ अपहृतभवितापाः पुण्यपद्माकरा ये
नवमरसकलापा नीरजस्थित्युदाराः। सततमधुरऽनेकोच्चागमानद्भुतं तद्
मधुपमुखपतद्भिर्नानुष त्वकार्युः ॥ ५० ॥ तुरगशरगवां हिक्ष्मामिते विक्रमान्दे गणधरपदमापुः पत्तने गूर्जरोाम् ।
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