Book Title: Jagadguru evam Gurugunratnakar Kavyam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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गुरुगुणरबाकरकाव्यम् । शत्रुञ्जये यो दशभिर्जिनालय
र्यात्राविधायी गुणराजसङ्खराट् । पौत्र्या काहयया तदीयया
नत काग्निं लम्धिसमुद्रसद्यः ॥ ३८ ॥ निर्दम्भमहद्गुरुभक्तिभावितः __ साध्वन्वयं यः प्रचुराऽऽज्यदः सदा । तेनैतदवामग्नन्दिपण्डिन--
म्याऽकारि धीमन्महिराजसाधुना ॥ ३९॥ श्रीपुण्डर्गक कनवान नवान्सव__ यात्रा द्विशोऽब्दं प्रति सङ्ग्युर यकः । जिनादिमाणिक्यगणिप्रभारदः
सहमधन्यादिपनियंधापयन् ॥ ४०॥ चतुर्भिभिः पनि पृ.क पृथक
पृशून्यत्र वेषपुर नगश्वगः। न्यायार्जिनाऽन्यूनधनग्हम्मदा
वादादुपेत्य वभिनुत्य यान् प्रभून ॥४१ ।। एषां चतुर्णा वतिनां तपःक्षमा
चातुर्यविद्यादिगुणाश्चिनात्मनाम् । तदाबहान सोमजयाहमूरिभिः साकं याचकता समर्पिता ॥ ४२ ॥
(पभिःकुलकम्) अथ सं०खीमा-सं०कुन्ता-कृतविस्तर:सोवश्रिया स्वर्गपुरी जिगाय या जिनालयच्याजवशात् ततः खकान् ।
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