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है कि वर्तमान में जितने ग्रन्थ जैन साहित्य में हरिभद्र के नाम से प्रचलित और प्रसिद्ध हैं, उतने अन्य किसी के नाम से नहीं ' । यही एक बात उनके अपरिमित ग्रन्थकर्तृत्व की पुष्टि में स्पष्ट प्रमाण-स्वरूप है । वर्तमान में उपलब्ध होने वाले उनके ग्रन्थों में से विशेष प्रसिद्ध, प्रतिष्ठित और प्रौढ़ ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं
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१. अनेकान्तवादप्रवेश |
२. अनेकान्तजयपताका स्वोपज्ञवृत्ति सहित ।
३. अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति ।
४. अष्टकप्रकरण ।
५. आवश्यक सूत्र बृहद्वृत्ति । ६. उपदेशपदप्रकरण |
७. दशवेकालिकसूत्रवृत्ति ।
८. दिङ्नागकृत न्यायप्रवेशसूत्रवृत्ति । ९. धर्मबिन्दुप्रकरण ।
१०. धर्म संग्रहणी प्रकरण । ११. नन्दीसूत्र लघुवृत्ति । १२. पंचाशकप्रकरण | १३. पञ्चवस्तुप्रकरण टीका । १४. पञ्चसूत्रप्रकरण टीका ।
१५. प्रज्ञापनासूत्र प्रदेशव्याख्या ।
१६. योगदृष्टिसमुच्चय ।
१७. योगबिन्दु |
१८. ललितविस्तरा नामक चैत्यवन्दनसूत्रवृत्ति ।
१९. लोकतत्त्वनिर्णय |
२०. विंशतिका प्रकरण ।
२१. षड्दर्शनसमुच्चय ।
२२. शास्त्रवार्तासमुच्चय, स्वकृतव्याख्यासहित ।
१. हरिभद्रसूरि के उपलब्ध सभी ग्रन्थों के नामसंग्रहके लिये द्रष्टव्य, जैन ग्रन्थावली, पृ. ९८-१०३, तथा उन्हीं द्वारा लिखित हरिभद्रसूरिचरित्र, पृ. २०-३० ।
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