Book Title: Haribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Author(s): Jinvijay
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ ( ५९ ) सम्मत त्ति काउं तस्संतिओ अणुओगो भण्णइ। अन्ने भणंति जहा, सुयं ण णळं। तम्मि दुठिभक्खे काले जे अन्ने पहाणा अणओगधरा ते विणट्ठा। एगे खंदिलायरिए संधिरें (?), तेण महराए पूणो अणुओगो पवत्तिओ त्ति माहुरी वायणा भण्णइ । तस्संतिओ अ अणुओगो भण्णइ ।' (नन्दी टीका, डेक० पु० पृ० १३) इस अवतरण में जितना प्राकृत पाठ है वह सारा हरिभद्रसूरि ने चूणि में से ही लिया है। क्योंकि चूणि में अक्षरशः यही पाठ विद्यमान है । (द्रष्टव्य-डेकन कालेज में संग्रहीत, नन्दीणि की हस्तलिखित प्रति पुस्तक नं० ११९७, सन् १८८४-८७ पृष्ठ ४.) __ नन्दीसूत्र की बृहट्टीका में, आचाराङ्गसूत्र विषयक व्याख्यान में, मलयगिरि सूरि ने 'तथा चाह चूर्णिकृत्' लिख कर निम्नलिखित पाठ, नन्दीचूणि से उद्ध त किया है_ 'दो सुयक्खंधा पणवीसं अज्झयणाणि एयं आयारग्गसहियस्स . पमाणं भणियं, अट्ठारसपयसहस्सा पूण पढमसूयक्खंधस्स नवबंभचेरमइयस्स पमाणं, विचित्तअत्थनिबद्धाणि य सुत्ताणि, गुरूवएसओ तेसिं अत्थो जाणियव्वो त्ति ।' नन्दी टीका, (मुद्रित पृ० २११) यही पाठ हरिभद्रसूरि ने भी अपनी टीका में अविकल रूप से उद्धृ त किया है। (द्रष्टव्य डे० पु. पृ० ७६)। ऐसे ही और भी कई जगह इस प्रकार के पाठ उद्ध त हैं। इससे यह बात निश्चित हुई कि हरिभद्रसूरि, शक संवत् ५९८ (वि० सं० ७३३ = ई० स० ६७६) से बाद में ही किसी समय में हुए हैं। गाथा के अनुसार विक्रम संवत् ५८५ में अथवा, दूसरे उल्लेखों में लिखे अनुसार वीर सं० १०५२ में नहीं हुए। चूर्णि के बाद बने कम से कम ५० वर्ष पश्चात् ही हरिभद्र की अपनी टीका लिखी होनी चाहिए और इसलिये इस तथ्य से भी उनका समय वही ईस्वी की ८ वीं शताब्दी निश्चित होता है। इस प्रकार भिन्न-भिन्न प्रमाणों से यह तो सिद्ध है कि हरिभद्रसरि प्राकृत गाथा आदि के लेखानसार, विक्रम की छठीं शताब्दी में नहीं अपितु आठवीं शताब्दी में हुए हैं, परंतु इससे यह निश्चित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80