Book Title: Haribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Author(s): Jinvijay
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 67
________________ ( ६२ ) आचार्य हरिभद्र जिसके प्रमाण और न्यायशास्त्र के सिखाने वाले गुरु हैं तथा क्षत्रिय वंशोत्पन्न वडेसर नामक राजा का जो पुत्र है और उद्योतन जिसका मूल नाम है उसने यह कथा निर्मित की है।' - इस गाथा कुलक में हरिभद्रसूरि के लिये 'बहुग्रन्थ प्रणेतृत्व' और 'प्रमाण न्यायशास्त्र विषयक गुरुत्व' के विशेषण जो साभिप्राय प्रयुक्त किये गये हैं उनसे विचारवान् विद्वान् स्पष्ट जान सकते हैं कि कथाकर्ता यहाँ पर जिस हरिभद्र का स्मरण करते हैं, वे वही हरिभद्रसूरि हैं जिनको लक्ष्य कर प्रस्तुत निबन्ध का लिखने का श्रम किया गया है। क्योंकि इनके अतिरिक्त 'अनेक ग्रन्थों की रचना कर समस्त श्रुत का सत्यार्थ प्रकट करने वाले' दूसरे कोई हरिभद्र जैन साहित्य या जैन इतिहास में उपलब्ध नहीं होते । अतः इससे यह अंतिम निर्णय हो जाता है कि महान् तत्त्वज्ञ आचार्य हरिभद्र और कुवलयमालाकथा के कर्ता उद्योतनसूरि उर्फ दाक्षिण्यचिह्न दोनों (कुछ समय तक तो अवश्य ही) समकालीन थे। इतनी विशाल ग्रन्थ राशि लिखने वाले महापुरुष की कम से कम ६०७० वर्ष जितनी आयु तो अवश्य होगी। इस लिए लगभग ईस्वी की ८ वीं शताब्दी के प्रथम दशक में हरिभद्र का जन्म और अष्टम दशक में मृत्यु मान लिया जाय तो वह कोई असंगत प्रतीत नहीं होता। इसलिये, हम ई० सन् ७०० से ७७० (विक्रम सं० ७५७ से ८२७) तक हरिभद्रसूरि का सत्ता-समय स्थिर करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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