Book Title: Haribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Author(s): Jinvijay
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 32
________________ ( २७ ) हकीकत लिखी है उससे, पुष्टि भी होती है । वहाँ पर भिक्षुक निष्पुण्यक आत्म सुधार के प्रारम्भ से लेकर अन्त में जब वह अपना कुत्सित भोजन फेंक देता है और पात्र को धोकर स्वच्छ कर डालता है; अर्थात् आलंकारिक भाषा को छोड़ कर सीधे शब्दों में कहें तो, जब वह दीक्षा ले लेता है तब तक उस भिक्षुक को - इस सारे समय में धर्मबोधकर गुरु उपदेश देने वाले और रास्ता बतानेवाले वर्णित किये गये हैं । सिद्धर्षि स्वयं कहते हैं कि इस रूपककथा में वर्णित धर्मबोधकर गुरु आचार्य हरिभद्र ही हैं और भिक्षुक निष्पुण्यक स्वयं मैं ही हूँ । इससे स्पष्टतया जाना जाता है कि सिद्धर्षि को दीक्षा लेने तक सद्द्बोध देने वाले और सन्मार्ग पर लाने वाले साक्षात् हरिभद्र ही थे । यद्यपि सिद्धर्षि के स्वकीय कथनानुसार वे हरिभद्र के समकालीन ही थे परन्तु जैन ग्रन्थोक्त दन्तकथा, इन दोनों प्रसिद्ध ग्रन्थकारों के बीच में ४ शताब्दी जितना अन्तर बतलाती है । जैन परम्परा के अनुसार हरिभद्र की मृत्यु संवत् ५८५ में हुयी थी और उपमितिभवप्रपञ्चा की रचना, रचयिता के उल्लेखानुसार ९६२ में हुई थी । हरिभद्र और सिद्धर्षि के बीच में समय व्यवधान बतलाने वाली दन्तकथा १३ वें शतक में प्रचलित थी, ऐसा मालूम देता है । क्योंकि प्रभावकचरितकार हरिभद्र और सिद्धर्षि के चरित्रों में, इन दोनों के साक्षात्कार के विषय में कुछ भी नहीं लिखते । यद्यपि वे इनके समय के सूचक वर्षों का उल्लेख नहीं करते हैं, तथापि, इन दोनों को वे समकालीन मानते हों ऐसा बिलकुल मालूम नहीं देता । क्योंकि वैसा मानते तो इनके चरितों में इस बात का अवश्य उल्लेख करते तथा इन दोनों के चरित्र जो दूर-दूर पर दिये हैं- हरिभद्र का चरित्र ९ वें सर्ग में और सिद्धर्षि का १४वें सर्ग में दिया है- वैसा न करके पास-पास में देते । प्रस्तुत विषय में इस दन्तकथा के वास्तविक मूल्य का निर्णय करने के लिये हरिभद्र और सिद्धर्षि के समय विचार की और उसके साथ सम्बन्ध रखने वाले दूसरे विषयों की पर्यालोचना करनी आवश्यक है । कथा की प्रशस्ति के अन्त में सिद्धर्षि लिखते हैं कि यह ग्रन्थ संवत् ९६२ के ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी गुरुवार के दिन जब चन्द्र पुनर्वसु नक्षत्र में विद्यमान था, तब समाप्त हुआ । इसमें यह नहीं लिखा हुआ है कि, यह ९६२ का वर्ष वीर, विक्रम, गुप्त, शक आदि में से कौन से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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