Book Title: Haribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Author(s): Jinvijay
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 53
________________ ( ४८ ) पांचवीं छठी शताब्दी बतलाता है। कोई किसी आचार्य को ई, स. के भी सौ दो सौ वर्ष पहले हुए साबित करता है, तो कोई उन्हें ९ वीं१० वीं शताब्दी से भी अर्वाचीन सिद्ध करता है। इस प्रकार ऊपर दी हुई नामावली में कितने ही विद्वानों के समय के विषय में विद्वानों का एकमत नहीं है । तथापि, देश और विदेश के विशेषज्ञ विद्वानों ने दीर्घपरिश्रमपूर्वक विस्तृत ऊहापोह करके, इस नामावली में के कई विद्वानों के समय का ठीक-ठीक निर्णय भी किया है और वह बहमत से निर्णीत रूप से स्वीकृत भी हुआ है। इसलिये, इन विद्वानों के समय का विचार, हरिभद्र के समय-विचार में बड़ा उपयोगी होकर उसके द्वारा हम ठीक-ठीक जान सकेंगे कि हरिभद्र किस समय में हए होने चाहिए। ऊपर जो आचार्यनामावली दी है उसमें वैयाकरण भर्तृहरि का भी नाम सम्मिलित है। अनेकान्तजयपताका के चतुर्थ अधिकार में, शब्द ब्रह्म की मीमांसा करते हए दो तीन स्थल पर हरिभद्र ने इनका नामोल्लेख किया है और इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ वाक्यपदीय में से कुछ श्लोक उद्धत किये हैं । यथा(१) आह च शब्दार्थतत्त्वविद् (भर्तृहरिः)-1 __ 'वाग्रपता चेदरनामेदवबोधस्य शाश्वती। न प्रकाशः प्रकाशेत सा हि प्रत्यवमशिनी ।। १. अनेकान्तजयपताका पर हरिभद्र ने स्वयं एक संक्षिप्त परन्तु शब्दार्थ का परिस्फुट करने वाली टीका लिखी है । [ इस टीका के अन्त में ऐसा उल्लेख है-'कृतिर्धर्मतो जा [या] किनीमहत्तरासूनोराचार्यश्रीहरिभद्रस्य । टीकाप्येपाऽवणिका प्राया भावार्थमात्रावेदिनी नाम तस्यैवेति' ] इस टीका में मलग्रन्थ में जिन-जिन विद्वानों के विचारों का–'अवतरणों का संग्रह किया गया है उन सबके प्रायः नाम लिख दिये हैं । मूल ग्रन्थ में उन्होंने कहीं पर भी किसी के मुख्य नाम का उल्लेख न करके जिस शास्त्र का जो पारंगत ज्ञाता है उसके सूचक किसी विशेषण से अथवा और किसी प्रसिद्ध उपनाम से उस-उस विद्वान् का स्मरण किया है। फिर टीका में उन सबका स्पष्ट नामोल्लेख भी कर दिया है। कहीं पर मूल ग्रन्थ में 'उक्तं च' मात्र कहकर ही अन्योक्त अवतरण उद्धृत कर दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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