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< गीता दर्शन भाग-3>
ऐसे भी कुछ लोग हैं, जो कहते हैं, सुख है ही नहीं; दुख ही है। नहीं कर रहे हैं। बड़े जीवंत, लिविंग, तेजस्वी संन्यास की बात कर जैसे फ्रायड कहेगा, दुख ही है। आप ज्यादा से ज्यादा इतना कर रहे हैं; नाचते हुए संन्यास की; जीवन को आलिंगन कर ले, ऐसे सकते हैं कि सहने योग्य दख उठाएं, ज्यादा मत उठाएं। या ऐसा संन्यास की। भागता नहीं है, ऐसे संन्यास की। हंसते हए, आनंदित कर सकते हैं कि अपने को इस योग्य बना लें कि सब दुखों को सह | संन्यास की। सकें। सुख है नहीं। फ्रायड कहता है, कहीं कोई सुख नहीं है। ज्यादा ___ ध्यान रहे, जो आदमी इच्छाओं की कामना को तो नहीं छोड़ेगा, और कम दुख हो सकता है; ज्यादा सहने वाला कम सहने वाला फल को कामना को नहीं छोड़ेगा, सिर्फ जीवन और कर्म के जीवन आदमी हो सकता है। लेकिन दुख ही है।
से भागेगा, वह उदास हो जाएगा। दुखी तो नहीं रहेगा, उदास हो लेकिन फ्रायड का यह वक्तव्य अवैज्ञानिक है। एक तरफ से जाएगा। इस फर्क को भी थोड़ा खयाल में ले लेना आपके लिए फ्रायड ठीक कहता है, क्योंकि जितना उसने समझा, सभी इच्छाएं उपयोगी होगा। दुख में ले जाती हैं। इसलिए उसका यह वक्तव्य ठीक है कि दुख उदास उस आदमी को कहता हूं मैं, जो सुखी तो नहीं है, और ही है। लेकिन फ्रायड को उस क्षण का कोई भी पता नहीं है, जो दुखी होने का भी उपाय नहीं पा रहा है। उदास वह आदमी है, जो इच्छाओं के बाहर जीया जा सकता है। एक क्षण का भी उसे कोई | सुखी तो नहीं है, लेकिन दुखी होने का भी उपाय नहीं पा रहा है। पता नहीं है, जो इच्छाओं के बाहर जीया जा सकता है। अगर उसको दख भी मिल जाए. तो थोडी-सी राहत मिले। बंद हो
जिनको पता है, बुद्ध को या कृष्ण को, वे हंसेंगे फ्रायड पर कि गया है सब तरफ से। सुख की कोई यात्रा शुरू नहीं हुई, दुख की तुम जो कहते हो, आधी बात सच कहते हो। इच्छाओं में कोई सुख यात्रा बंद कर दी। हीरे-जवाहरात हाथों में नहीं आए, कंकड़-पत्थर संभव नहीं है। लेकिन सुख संभव नहीं है, यह मत कहो। क्योंकि रंगीन थे, खेल-खिलौने थे, उनको सम्हालकर छाती से बैठे थे, इच्छाओं के बिना आदमी संभव है। और इच्छाओं के बिना जो उनको भी फेंक दिया। ऐसा आदमी उदास हो जाता है। आदमी संभव है, उसके जीवन में सुख की ऐसी वर्षा हो जाती। कंकड़-पत्थर सम्हाले बैठे हैं आप। भूल-चूक से मैं आपके है-कल्पनातीत! स्वप्न भी नहीं देखा था, इतने सुख की वर्षा चारों रास्ते से गुजर आया और आपसे कह दिया, क्या कंकड़-पत्थर ओर से हो जाती है। जैसे ही इच्छाएं हटी, और सुख आया। रखे हो? अरे, पकड़ना है तो हीरे-जवाहरात पकड़ो! छोड़ो'
अगर इसे मैं ऐसा कहूं, तो शायद आसानी होगी समझने में। कंकड़-पत्थर। आप मेरी बातों में आ गए, फेंक दिए सुख और इच्छा में वैसा ही संबंध है, जैसा प्रकाश और अंधेरे में। कंकड़-पत्थर। कंकड़-पत्थर का बोझ तो कम हो जाएगा, उनसे अगर इसे ठीक से समझना चाहें, तो ऐसा समझें कि सुख के | आने वाली दुख-पीड़ा भी कम हो जाएगी। कंकड़-पत्थर चोरी चले विपरीत दुख नहीं है, सुख के विपरीत इच्छाएं हैं। सुख का जो जाते, तो जो पीड़ा होती, वह भी नहीं होगी। कंकड़-पत्थर खो जाते, अपोजिट पोल है, वह दुख नहीं है। सुख का जो विरोधी है, वह तो जो दर्द होता, वह भी नहीं होगा। कंकड़-पत्थर कोई चुरा न ले इच्छा है। कमरे में दीया जलाया; अंधेरा नहीं रहा। कमरे में दीया जाए, उसकी जो चिंता होती है, वह भी नहीं होगी। रात आसानी से बुझाया; अंधेरा भर गया। इच्छाएं भरी हों, अंधेरा भरा है। दीया सो जाएंगे। लेकिन खाली हाथ! हीरे जवाहरात, कंकड़-पत्थर जलाएं, इच्छाहीन मन को जलाएं, अंधेरा खो जाएगा। अंधेरे में दुख फेंकने से नहीं आते। खाली हाथ उदास हो जाएंगे। है; इच्छाओं में दुख है।
जिस चित्त में सुख का आगमन नहीं हुआ और दुख की स्थिति कृष्ण जिस संन्यास की बात कर रहे हैं, वह कोई उदास, जीवन | । को छोड़कर भाग खड़ा हुआ, वह उदास हो जाता है। उदासी एक से हारा हुआ, थका हुआ, आदमी नहीं है। कृष्ण जिस संन्यास की निगेटिव स्थिति है। वहां दुख भी नहीं है; और सुख का कोई रास्ता बात कर रहे हैं, वह हंसता हुआ, नाचता हुआ संन्यास है। उस नहीं मिल रहा। और जो भी रास्ता मिलता है, वह फिर दुख की तरफ संन्यास के होठों पर बांसुरी है।
ले जाता है। तो वहां जाना नहीं है। सुख का कोई रास्ता नहीं वह संन्यास वैसा नहीं है, जैसा हम चारों तरफ देखते हैं। मिलता। तो आंख बंद करके अपने को सम्हालकर खड़े रहना है। संन्यासियों को-उदास, मुर्दा, मरने के पहले मर गए, जैसे इस सम्हालकर खड़े रहने में उदासी पैदा होती है। संन्यास जो इतना अपनी-अपनी कब्र खोदे हुए बैठे हैं! कृष्ण उस संन्यास की बात | उदास हो गया, उदासीन, उसका कारण यही है।