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फूलका गुच्छा ।
लहरें उठने लगीं; परन्तु यमुना एकान्तमें जाकर न जाने क्यों रोदन करने लगी ।
वसन्तका हृदय आज प्रेमके प्रतिदानसे आनन्दित हो रहा है । प्यारीके कोमल करस्पर्शने उसके सारे शरीरको पुलकित कर दिया है । वह व्याकुलतासे रातकी प्रतीक्षा कर रहा है । उसे ऐसा होने लगा कि इस अंध- कारागृह के लोहेके कठिन किवाड़ बिलकुल खुल गये हैं और मैं चांदनी के प्रकाशमें पुष्पशय्यापर बैठा हुआ सुभद्राको फूलोंसे सजा रहा हूं ।
भास
अंधकारागारके अंधकारको सघन करती हुई रात आ गई । इसके पश्चात् सघन अंधकारको एकाएक प्रसन्न करके प्रकाशमान दीपोंकी सुवर्णकिरणोंने मानो काले रेशमकी जरी बुनना शुरू कर दी । बाहरसे सुभद्राने धीरेसे - कहा -- वसन्त !
वसन्त रोमांचित होकर कहा -- सुभद्रा !
सुभद्राने कागज कलम दावातको ताखमेंसे आगे करके कहा -- यह लो ! आनन्दित वसन्तने ताखके मार्ग से आनेवाले नाम मात्र प्रकाशके सहारे 'आंखें फाड़ फाड़ कर बड़ी कठिनाईसे एक पत्र लिखा और फिर कहाभद्रे, प्रतिज्ञा करो कि यह चिट्ठी तुम न पढ़ोगी और यमुनाको भी न दिखलाओगी । यदि दया करके इसे तुम अवन्ती राज्य के मंत्रीके पास भेज दोगी, तो मैं इस कारागृहसे सहज ही मुक्त हो जाऊंगा ।
सुभद्राने कहा – मैं शपथ करती हूं, तुम्हारी आज्ञाकी अक्षरशः पालना करूंगी।
उसी रातको एक दूत चिट्ठी लेकर अवन्तीको रवाना हो गया । (६)
दूतके अवन्ती जाकर वापिस आनेमें जितने दिन लगना चाहिए, वसन्तने उनका मन ही मन में अनुमान कर लिया और फिर वह अपने अंधकारागार में 'जहां कि अंधकार के कारण रात और दिनका भेद ही न मालूम होता था, छतके सूराखों से जो सूर्यकी इनी गिनी किरणें आती थीं, उनकी घड़ी देख देखकर तथा सुभद्रा से पूछ पूछ कर दिन गिनने लगा ।
एक दिन सुभद्राने आकर कहा -- वसंत, आज अवन्ती राज्यका मंत्री सेना - सहित आकर उपस्थित हो गया है; परंतु वह तो तुम्हारे उद्धार करनेकी कोई भी चेष्टा नहीं करता ।