Book Title: Fulo ka Guccha
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ ५० फूलोका गुच्छा। __सत्यवतीको छुड़ाकर कुमारने लाला साहबकी खूब पूजा की और फिर उन्हें एक झाड़से उन्हीं के दुपट्टेके द्वारा कसकर बाँध दिया । मन्द्रा वृक्षकी ओटमें खड़ी हुई ये सब बातें देख रही थी, इतनेमें थोड़ी ही दूरसे किसीकी आवाज सुनाई दी-'सती ! सती !" __ सत्यवतीने कुमारका हाथ पकड़कर कातर स्वरसे कहा, “कुमार, यह मेरे शरण भैयाकी आवाज आ रही है । तुम उन्हें किसी तरह बचा लो।" कुमार नायकसिंहने कुछ आगे बढ़कर गंभीर भावसे पुकारा “तुम कहाँ हो ?" भिक्षुने पूछा, “तुम कौन ?" कुमार-बौद्ध भिक्षु, मैं नायकसिंह हूं। तुम किसी तरहका भय मत करो। सत्यवती सकुशल है और लाला किशनप्रसाद झाड़से बँधे हुए हैं । भिक्षु समीप आ गया और नायकसिंहका हाथ अपने हाथमें लेकर बोला, "भाई, तुम्हें स्मरण होगा कि मेरे पिता महाराजा अजीतसिंहने पाटलीपुत्रके युद्ध में तुम्हारे पिताके प्राण बचाये थे। मेरे पैरमें बाण लग गया है। चलने फिरनेकी मुझमें शक्ति नहीं, इसलिए अब मैं धीरे धीरे चलता हूँ और मन्दार पर्वतकी सघन झाड़ीमें जो एक कुटीर है, वहां जाकर विश्राम करूंगा । कुमार नायकसिंह, इस समय तुमने जिस अबलाके धर्मकी रक्षा की है वह सत्यवती मेरी छोटी बहिन है। कुम्भके मेलेमें उसे कोई डाकू चुरा ले गया था। इतने समयके बाद उसका पता लगा है । अब तुम सावधान रहना, मिथिलाकी राजकुमारीको मैं तुम्हारे पास छोड़े जाता हूँ।" भिक्षु चला गया। सत्यवती दौड़कर पास आ गई और पूछने लगी “कुमार, क्या अभी तुम्हारे पास मेरे शरण भैया थे ? हाय ! वे कहां चले गये !" नायकसिंहने कहा “कुमारी सत्यवती, जिन बुद्ध भगवानने तुम्हारे भाईको आश्रय दिया है, मैंने भी अब उन्हींकी शरण ले ली है । तुम्हें अब कोई डर नहीं है। तुम इस समय इस शिलाकन्दरमें बैठ जाओ, मैं जरा यहां वहां चलकर देखू, क्या हाल है।" मूसलधार पानी बरस रहा था । अन्धकार इतना गहरा था कि हाथको हाथ नहीं सूझता था । कुमार नायकसिंहने बिजलीके प्रकाशमें देखा कि मन्द्रा पागलिनीके समान चली जा रही है। उसके नेत्र उस सघन अंधकारको भेद कर भिक्षुका अनुसरण कर रहे हैं। नायकसिंहको देखकर उसने पूछा, "कुमार, भिक्षु कहां गया ?"

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112