Book Title: Fulo ka Guccha
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 96
________________ कुणाल । ९१ बन्धुको माके टूटे हारके साथ एक पदक मिल गया था; इस समय वह उसीको मनोयोगपूर्वक देख रहा था । दैवयोगसे पदकका पल्ला खुल गया और उसमेंसे एक कागज बाहर निकल पड़ा । युवराजने उसे जल्दीसे उठा लिया । यह बात युवराज बहुत समय से जानते थे कि चपलाने विश्ववर्माकी छोटीसी प्रतिकृति ( तसबीर) खींचकर पदकमें रख छोड़ी है । युवराजने हँसते हँसते उस तसबीरको पदक में रख करके और उसे बन्द करके बच्चे को गोद में उठा लिया । चपला लाजके मारे गढ़ गई; वह यह नहीं जानती थी कि युवराज मेरे पदककी 'सब बात जानते हैं । चपलाने बाहर आकर बच्चे को गोदी में उठा लिया और प्रियवर्माने युवराजसे बैठनेके लिए कहा । उसी समय युवराजने यह समाचार सुनाया कि विश्ववर्मा मालवाके शासनकर्ता नियत किये गये । चपला बोली - "नहीं, बाबा इस उमरमें इतनी दूर कैसे जावेंगे ?" युवराजने हँसकर कहा - " इसकी व्यवस्था करनेका भार मेरे ऊपर रहा- मैं सब ठीक कर दूँगा ।" तब चपलाने फिरसे कहा - "अच्छा तो यह और स्वीकार कीजिए कि आप बीचबीचमें देवीको लेकर मालवा आया करेंगे । ” युवराजने स्वीकृति दे दी । चपला अब भी उनकी आदरणीया छोटी बहू है | कुणाल । प्रियदर्शी महाराजा अशोकके पुत्रका नाम कुणाल था । कहते हैं कि उसकेः नेत्र कुणाल या राजहंस के समान सुन्दर थे, इसीलिए पिताने उसका प्यारकाः नाम कुणाल रक्खा था । उसे जो देखता था, वही प्यार करता था । महाराजने अपने इस मुकुल के लिए एक और मुकुल तलाश किया। इस अनुपम जोड़ीको देखकर महाराजकी सारी चिन्तायें दूर हो जाती थीं और उनका हृदय आनन्द-सागरमें लहराने लगता था । बहूका नाम था काञ्चन । काञ्चन अपने छोटेसे स्वामी के साथ हँसती खेलती, लड़ती झगड़ती, और रूठती मचलती हुई राज-प्रासादको सतद आनन्दपूर्ण बनाये रखती थी । इस तरह बहू अपने नवजीव- के मधुर दिवसको फूलकी पंखुरियोंके समान धीरे धीरे विकसित करती हुई आगे बढ़ने लगी । कुछ समय में ये दोनों मुकुल अच्छी तरहसे खिल उठे

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