________________
९८
फूलोका गुच्छा।
राजकुमारने खिन्नहृदय होकर पूछा,-"क्या खोज करूँ ?"
बुद्धदेवकी ओरसे जब इस प्रश्नका उत्तर नहीं मिला, तब युवराजने कहा "प्रभुकी आज्ञा मुझे मान्य है । मैं खोज करूँगा। मुझे ऐसा भास होता है कि भगवान् मेरी परीक्षा ले रहे हैं।" बुद्धदेवने कहा-“संभव है-हो सकता है।" "अच्छा तो अब मैं आपके दर्शनके लिए फिर कब जाऊँ? क्या आज्ञा है ?" "छह महीनेके पीछे ।"
राजकुमार बुद्धदेवके चरणोंको साष्टांग नमस्कार करके चुपाचुप वहाँसे चल दिया। उसके साथियोंकी टोली साथ हो ली। सर्वत्र शान्तिका साम्राज्य हो गया । हरिणशिशु उस दिव्य पुरुषकी जंघाके आश्रयसे फिर विश्राम करने लगा। बुद्धदेव फिर ध्यानस्थ हो गये। .
(२) पूर्व घटनाको बीते आज पूरे छह महीने हो गये। वही स्थान, वही उपवन, वही जम्बूवृक्ष और उसी वृक्षके नीचे पूर्वकी स्थितिमें ही भगवान् बुद्धदेव ध्यानस्थ हो रहे हैं । सूर्य अभी अभी डूबा है। वायु स्वेच्छानुरूप चल रही है। एका बड़ा भारी तूफान आनेके चिह्न दिखलाई देते हैं। जंगली पशु भयभीत होकर उस दिव्य मूर्तिके आश्रयमें आ रहे हैं । पक्षी वृक्षोंमें छुपकर बैठ रहे हैं और आर्तस्वरसे चुहचुहाट मचा रहे हैं।
थोड़ी देरमें मूसलधार पानी बरसने लगा । आँधी और पानीके जोरसे वृक्ष उखड़ उखड़ कर पड़ने लगे, परन्तु उस जम्बूवृक्षपर इस आँधी पानीका कुछ भी परिणाम न हुआ-भगवान् बुद्धदेवके शरीरपर पानीका एक बिन्दु भी आकर नहीं पड़ा! ऐसा कौन है, जो महापुरुषोंके दृढनिश्चयकी जड़को हिला सके ? - इस भयंकर आँधी पानीकी कुछ भी परवा न करके वह पूर्वपरिचित राजकुमार नियत तिथिको उस पवित्र स्थान पर आया और बुद्ध महात्माको साष्टांग प्रणाम करके बोला___ भगवन् ! मैं बड़ी भारी उत्कंठासे आजके दिनकी प्रतीक्षा कर रहा था। मैंने प्रत्येक रात्रि और दिनकी गणना की है, तब कहीं यह इच्छित समय पाया है। मुझे विश्वास है कि मैं आपकी परीक्षामें उत्तीर्ण हो चुका होऊँगा-आपकी कसौटीपर मेरा चरित्र ‘सौ टंचका सोना' सिद्ध हो गया होगा । मैंने अपना जीवनकम बहुत ही पवित्र रक्खा है, इंद्रिय सुखोंकी परवा न करके मैंने चिरकाल तक