________________
ऋण-शोध।
ऋण-शोध ।
भाग्यके फेरसे कमलाप्रसादको नौकरी करनी पड़ी। वह बिलकुल गरीबका लड़का न था-उसका पिता एक ऐसी जायदाद छोड़ गया था कि यदि वह नौकरी न करता, तो भी आनन्दसे अपने दिन बिता सकता। परन्तु पिताकी मृत्यु होते ही समस्त जायदाद उसके बड़े भाई बिहारीलालके हाथ लगी। उस समय कमलाप्रसादकी उमर बहुत छोटी थी। बिहारीलालने जायदाद पाते ही उसे थोड़े ही दिनोंमें फूंक दी । उसकी बुरी चालचलनका और कुसङ्गका यह परिणाम हुआ कि घरकी सारी जायदाद बिक गई और अन्तमें रहनेका घरद्वार भी उसने गिरवी रख दिया; तो भी उसकी आँख न खुली । अपनी मुराद और शौक पूरा करनेके लिए वह चोरी तक करने लगा और एक बार गिरफ्तार होकर उसे जेलकी हवा भी खानी पड़ी। जेलसे छूटते ही वह न मालूम कहाँ चला गया-किसीको उसका पता न लगा। गाँवके सब आदमी उससे निश्चिन्त हो गये-उनके सिरसे मानो एक आपत्ति टल गई । परन्तु उसकी माताको उसके जानेसे जो विषम पीड़ा हुई उसे वह ही जानती थी-वह बिहारी के लिए रातदिन रोने लगी।
इस समय गृहस्थीका सारा भार कमलाप्रसादके ऊपर पड़ा। कमलाप्रसाद अभी लड़का है, वह गृहस्थीके कामकाजोंसे बिलकुल अनजान है। दोनों वक्त दो ग्रास खानेकी बात तो दूर रही उसे अपना मस्तक रखने तकको भी कहीं जगह नहीं है, इसलिए उसे नौकरी करनेकी चेष्टा करनी पड़ी। बड़ी कठिनाईसे उसे एक दूर ग्राममें नौकरी मिल गई । वह अपनी मा और बहिनको छोड़कर अपनी नौकरीकी जगह चला गया। जाते समय माने उसका हाथ पकड़के कहा "बेटा, बड़े भाईकी खबर न भूल जाना-हाय ! मेरा प्यारा बेटा कहाँ गया !" ऐसा कहते कहते उसके नेत्रोंसे आँसुओंकी झड़ी लग गई। कमलाप्रसादने माको ढाढस बँधाकर कहा-“मा, चिन्ता न करो-मैं भैयाका पता जरूर लगाऊँगा और उसे बहुत जल्दी तुम्हारे सामने ला कर खड़ा कर दूंगा।" .
कमलाप्रसाद अपनी मातासे यह बात कह तो आया; परन्तु भैयाका पता लगाना उसके लिए बिलकुल असंभव था। वह सारे दिन कामकाजमें फँसा रहता