Book Title: Fulo ka Guccha
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 76
________________ - ऋण-शोध । वह मास भी पूरा हो गया; कमलाप्रसादके आनन्दकी आज सीमा नहीं हैअब उसके जीवनकी सारी इच्छायें सफल होना चाहती हैं। ___ कमलाप्रसादके जमा किये हुए रुपये उसके मालिकके पास रहते थे। जिस दिन एक हजार रुपये पूरे हुए उसी दिन वह अपने मालिकके पास विदा लेनेके लिए पहुँचा। वह इसकी सब बातें सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। कमलाप्रसादके दासत्वके दिन पूर्ण हो गये, यह जानकर उसके मनका बोझा हलका हो गया। कमलाप्रसाद अब अधिक विलम्ब नहीं कर सकता-इतने दिनों तक धय रखकरके भी अब उसका मन रंचभर भी धीरज नहीं रख सकता। इसी समय वह रुपये लेकरके अपने गाँवको लौटना चाहता है। उसके मालिकने कहा" अच्छा तुम जाना चाहते हो तो जाओ; परन्तु इतने रुपये अकेले साथमें मत ले जाओ। रास्ता अच्छा नहीं है-चोर डाँकुओंका भय है। इस समय कुछ रुपये साथ में लेते जाओ-और फिर इसी तरह थोड़े थोड़े करके सब रुपये ले जाना।" ___ कमलाप्रसाद अब ठहर नहीं सकता। इस समय तक क्या वह थोड़ा ठहरा रहा है ? और अब फिर भी ठहरना-अब भी विलम्ब ? अब ऐसा नहीं हो सकता। उसने कहा “क्षमा कीजिए-कुछ डर नहीं है, मैं बहुत सावधानी के साथ रुपये ले जाऊँगा।" मालिकने एक बार फिर भी समझानेकी चेष्टा की। कमलाप्रसादने अपने मालिककी बात पहले कभी नहीं टाली थी, वह यह भी जानता था कि वे जो कुछ कहते हैं वह मेरी ही भलाई के लिए कहते हैं; किन्तु तो भी वह आज अपने मनकी अधीरताको दमन न कर सका । मालिकने उसके सब रुपये लाकर उसे सोंप दिये । रुपयोंको हाथमें लेते ही ऐसा मालूम होने लगा कि मानों वे उसके चिरपरिचित बन्धु हैं ! वे सबके सब उसके मनमें बसे हुए हैं-देखते ही वह उन्हें पहचान सकता है ! किस रुपयेमें किस जगह दाग है, कौन किस जगह घिसा है, कौन चमचमाता है तथा कौन मैला है-सब ही वह जानता है । यहाँ तक कि वह यह भी कह सकता है कि कौन रुपया उसे अपने मालिककी कन्याके विवाहके समय इनाममें मिला था और कौन पुत्रके उत्पन्न होनेके समय । बहुत दिनोंके पीछे प्यारे बन्धुके मिलनेसे जैसा आनन्द होता है रुपयोंको देखकर कम. लाप्रसादको आज वैसा ही आनन्द होने लगा।

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