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फूलोंका गुच्छा ।
थे वे वापस लौट आये - आपका कुछ भी पता न लगा सके, इससे हम लोग बहुत ही चिन्तित हो रहे थे । अभी कुछ ही समय पहले और भी बहुत से सवार 'आपकी खोज में दौड़ाये गये हैं ।
युवकने आज्ञा दी कि इसी समय दस दासियाँ बुलाई जायँ । मुँहसे शब्द . निकलते ही लोग दौड़े । एक पहर रात बीतने के पहले ही दासियाँ नियुक्त हो गईं, जुदा स्थान ठीक कर दिया गया और चपलाकी एक राजकुमारीके समान सेवा शुश्रूषा होने लगी ।
युवराज चन्द्रगुप्तका यह अभिनव कार्य देखकर सेनाके वे सिपाही जो युवक थे संकेतोंसे परिहास करने लगे और जो वृद्ध थे वे कुछ अप्रसन्नसे होकर - मन-ही-मन बड़बड़ाने लगे-—यह अच्छी बात नहीं । सबको ही सन्देह हो गया कि यह दरिद्रा लड़की राजरानी बन बैठेगी । किन्तु राजकुमारका एक सेवक गर्वसे बोला- “ श्रीमती ध्रुवदेवीके पास सम्वाद पहुँचते ही यह सारा राजरानीपना न जाने कहाँ उड़ जायगा ।
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राजकुमार महाराज समुद्रगुप्तके पुत्र चंद्रगुप्त ( द्वितीय ) हैं और ध्रुवदेवी उनकी पत्नीका नाम है । इस समय युवराज युद्धयात्रा के लिए बाहर निकले हैं और थानेश्वर के पास शिबिर डालकर ठहरे हुए हैं ।
३ इतिहास |
यह चौथी शताद्विकी घटना है । यहाँ उस समय के इतिहासकी दो चार बातोंका उल्लेख करना अप्रासंगिक न होगा। प्राचीन इतिहासका परिचय बहुत कम पाठकों को होता है, इसलिए एक छोटीसी आख्यायिका लिखने में भी इतिहासकी बातोंका उल्लेख करना पड़ता है ।
मौर्यकुलतिलक देवप्रिय प्रियदर्शी महाराजा अशोकके समय गान्धारसे लेकर पूर्व समुद्रत और नेपालसे लेकर मैसूरतक सारा देश एक सूत्रमें ग्रथित हो गया था । यह बात हुई ईस्वी सन् से पहले तीसरी शताब्दिकी । इसके बाद दूसरी शताब्दिमें मौर्यवंशकी राजश्री लुप्त हो गई । पुराणों में लिखा है कि उस समय सुङ्गवंश के राजा भारतके सम्राट् हो गये थे; परन्तु वास्तवमें वे किसी एक छोटेसे प्रदेशके राजा थे। उस समय इस देशमें यवन, शक, तुरुष्क, और चीन जातिके लोग अपने अपने राज्य स्थापन कर रहे थे और सारा . आर्यावर्त विदेशियोंके आक्रमणसे पीड़ित हो रहा था । अनार्यवंशके अन्ध्रराजा