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ऋण-शोध। .
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कि मैं किस ओरसे आया था और किस ओर जाऊँगा ! कभी कोई एक रास्ता सा दिखाई पड़ता है और उस ओर चलता है कि फिर जंगलमें जा फँसता है। इस तरह भटकते भटकते उसे अचानक किसी मनुष्यके आनेकी आहट सुनाई पड़ी-मानों उस अन्धकारको चीरता हुआ कोई उसीकी तरफ बढ़ा आ रहा है। पास आते ही कमलाप्रसादने देखा कि एक जंगली शिकारी है।
उसे देखकर कमलाप्रसादके प्राणोंमें प्राण आ गये । उसने उतावलीसे पूछाभाई, क्या तुम मुझे रास्ता बतला सकते हो ?
शिकारीने उसे नीचेसे ऊपर तक तीक्ष्ण दृष्टि से देखकर पूछा-तुम्हें कहाँ “जाना है ?
कमलाप्रसादने अपने गाँवका नाम बतला दिया।
शिकारी उसको थोड़ी दूर साथ लिये हुए रास्तेपर आ पहुँचा-और फिर बोला " इसी सामनेके रास्तेसे बराबर उत्तरकी तरफ चले जाओ।" ।
कमलाप्रसाद उसी रास्तेसे चलने लगा। धीरे धीरे थकावटसे उसका शरीर शिथिल होने लगा-पैरोंने जवाब दे दिया । इतनेमें उसे थोड़ी दूरपर एक फूसका घर दिखाई दिया। उसमेंसे एक मंद प्रकाशकी रेखा बाहरके घोर अन्धकारके ऊपर पड़ रही है । कमलाप्रसाद धीरे धीरे उसी झोंपड़ीकी ओर चलने लगा । देखा उसमें एक स्त्री बैठी बैठी कपड़े सी रही है। इतनी रात होनेपर भी शयन करनेकी ओर उसका कुछ भी लक्ष्य नहीं जान पड़ता। वह तन्मय होकर काम कर रही है । कमलाप्रसादने उससे कहा- "मैं थका हुआ पथिक हूँ। आज रातके लिए क्या मुझे यहाँ स्थान मिल सकता है ? ___ स्त्री कुछ समय इसकी ओर देखकर रह गई । फिर बड़े विस्मयसे बोली"इतनी रातको इस रास्तेसे तुम कैसे आये ?" - कमलाप्रसाद-"मैं जंगलमें रास्ता भूल गया था-भाग्यसे एक शिकारीने मुझे यह रास्ता बतला दिया है।" इतना कहके वह बैठ गया-और खड़ा नहीं रह सका। __ कुछ समय तक रमणी चुपचाप न मालूम क्या सोचती रही। कुछ इधर 'उधर करने लगी और अन्तमें वह यहाँ वहाँ चारों ओर देखकर दबी जबानसे बोली-"जानते हो, तुम यहाँ कहाँ आपहुँचे हो ?" ___ कमलाप्रसाद--(स्त्रीके मुखकी ओर देखकर ) नहीं तो! यह कौनसी जगह है ?