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जयमती ।
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दमयन्ती, राजीमती आदि सती स्त्रियोंके पतिप्रेमकी कथाओंको स्मृतिपटपर जागरूक कर देती है ।
ईस्वी सन् १६७९ में ' चामगुरीया' राजवंशका ' चुलिकफा ' नामक राजा आहोमके राजसिंहासनका अधिकारी हुआ । यह राजा अल्पवयस्क और क्षीणशरीर था, इसलिए लोग इसे लराराजा कहते थे । आसामकी भाषामें लरा शब्दका अर्थ बालक या शिशु होता है । उमरमें कम होने पर भी लराराजा बुद्धिमान था । उस समय राज्यकी जैसी दशा थी और मंत्रियोंकी शक्ति जैसी बढ़ी चढ़ी थी, उसका विचार करके इसने राजा होनेके योग्य जो राजकुमार थे, उनको गुप्त घातकोंके द्वारा अंगहीन या प्राणहीन कर डालनेका निश्चय किया । इसे भय था कि यदि मंत्रियोंकी मुझसे न बनेगी तो ये मुझे सिंहासनसे च्युत करके किसी दूसरे राजकुमारको राजा बना देंगे । लराराजाका नृशंस कार्य चलने लगा | अनेक वंशोंके अनेक राजकुमारोंको उसने विकलाङ्ग या विकलप्राण करा डाला | दुर्बल राजा स्वभावसे ही भीरु कापुरुष और अत्याचारी होते हैं । लराराजा स्वयं दुर्बल था, इस लिए उसने इस प्रकार कापुरुषता और निर्दय - ताका आश्रय लेकर अपनी राजभोगकी तृष्णाको पूर्ण करना चाहा ।
तुंगखुंगीयवंशके गोवर राजाके गदापाणि नामक पुत्रने — जो कि देवतुल्य, तेजस्वी, असाधारण बलशाली, और असीम साहसी था - लराराजाके हृदय में भय उत्पन्न किया । गदापाणि ऐसा बली था कि उसने एक दिन तीन मत्त हाथियोंके दाँत पकड़कर उन्हें हिलने चलने न दिया था ! दो चार गुप्त घातकोंके द्वारा ऐसे पुरुषसिंहको अंगहीन करना असंभव समझकर लराराजाने उसके वध करने के लिए बड़े बड़े आयोजन किये। किसी तरह यह संवाद गदापाणिको भी मालूम हो गया; परन्तु इससे उसका साहसी हृदय जरा भी विचलित न हुआ । गदापाणिकी स्त्री रानी जयमती बड़ी ही सच्चरित्रा और पतिव्रता थी । वह अपने स्त्री-सुलभ स्वभावसे पतिकी रक्षाके लिए व्याकुल होकर उससे कहीं भाग जानेके लिए विनय अनुनय करने लगी । गदापाणि पत्नी के प्रस्ताव से किसी प्रकार सहमत नहीं हुए । उन्होंने कहा, मैं मृत्युसे डरनेवाला मनुष्य नहीं । तुम्हें और अपने दुधमुँहे बच्चोंको छोड़कर मैं यहांसे कभी नहीं भागूँगा । " जयमती कांतर होकर बोली “ नाथ ! आपका वीरहृदय मृत्युभयसे कंपित नहीं हो सकता - आप मृत्युके भयको तुच्छ समझते हैं, यह मैं अच्छी तरह से जानती हूँ किन्तु यह तो सोचिए कि राजसेवक आपको पक
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फू. गु. ५