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विचित्र स्वयंवर |
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नायक सिंह धीरेसे पूछा, "क्यों ?"
मन्द्रा -- नायक सिंह तुमने कभी प्यार किया है ?
नायकसिंहने कुछ हँसकर कहा, "मैं समझता हूं कि प्यारके परिचय देनेका तो यह स्थान है और न यह समय है । जिस बात को मैंने आज लगभग सात वर्ष से अपने हृदयमें छुपा रक्खा है, उसे अभिनय ( नाटक ) के अन्तिम अङ्कमें प्रगट करना, कहां तक सङ्गत या असङ्गत- 39
मन्द्रा --- कुमार मैं तुम्हारे प्रणय या प्यारके योग्य नहीं हूं । भाई, क्षमा करना आज मेरा निर्मम पाषाणहृदय चूर्ण हो गया है ।
मन्द्रा अपने आपको भूल गई । उसने अपने मस्तकको कुमारके वक्षःस्थलपर रख दिया। उसके भीगे हुए बालों और वस्त्रोंको देखकर नायकसिंह कांप उठे । उन्होंने अकुलाकर कहा, “कुमारी मन्द्रा, तुम शीघ्र ही राजमहलको लौट जाओ ।"
"नहीं भाई, मेरे जीवनका भी यह अन्तिम अङ्क है । मैंने जिन्हें अपने बाणसे विद्ध किया है, अब मैं उन्हीं चरणोंका अनुसरण करूंगी। मेरा संसार और स्वर्ग अब उन्हीं पदतलोंमें है !" यह कहते कहते मन्द्रा रोने लगी ।
कुमार नायक सिंहने धीरे धीरे कहा, “अच्छा मन्द्रा, जाओ । तुम उन्हें मन्दार पर्वतकी दक्षिण कुटीरमें पाओगी ।"
यह सुनकर मन्द्रा उस विषम मार्गमें तेजी से चल पड़ी ।
पानी बरस रहा है । चतुदर्शीकी पिछली रात है । सत्यवती दबे पैरोंसे कुमारके पास आकर बोली,– “कुमार, यह अभी तुम्हारे पाससे कौन चला गया ?” सत्यवती भयसे कांप रही थी । नायकसिंहने कहा, "अङ्गराज्यकी शक्ति मन्द्रा !" सत्यवती - वह कहां गई है ?
नायक- - तुम्हारे शरणभाईके चरणशरणमें । देखो, ऊपर बुद्ध - शक्ति है और नीचे धरातलमें राजशक्ति । यह सब तुम्हारे भाई की ही महिमा है ।
सत्यवती — कुमार, क्या तुम मन्द्रा पर प्यार करते हो ?
कुमार — जान पड़ता है कि करता हूं; किन्तु क्या तुमने हम दोनोंकी बातचीत सुन ली है ?
सत्यवतीने लजाकर कहा, “हां सुन ली है; परन्तु कुमार, अब तुम क्या • करोगे ?"