Book Title: Fulo ka Guccha
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 25
________________ फूलोंका गुच्छा । बुन्देलखण्डका शासनकर्त्ता हूं, तुम मुझे समस्त सागरोंसहित पृथ्वीका अधीश्वर कहकर मेरा अपमान मत करो ।" २२ ८८ भिन्न भिन्न देशोंकी राजसभाओंसे लौटे हुए दूतगण एक एक करके राजा लोगोंकी सम्मति प्रगट करने लगे । कन्नौजसे लौटे हुए दूतने कहा--" महाराज कन्नौजपति महेन्द्रपालदेव और उनके सभा-पण्डितोंने कवि राजशेखरप्रणीत विद्धशालभंजिका भेजी है और उसके शिरोभागपर अपने हाथ से आपके प्रस्तावका उत्तर लिख दिया है । " राजाने ग्रन्थको लेकर देखा । उसपर लिखा था- काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् । " राजाने विरक्ति प्रकट करके सिर झुका लिया । दूसरे दूतने आकर राजाकी शरण में एक पत्र रक्खा । उसे राजाने स्वयं पढ़ा । चेदिकुलके कलचुरिवंशीय मुग्धतुङ्ग प्रसिद्धधवल राजाने लिखा था कि- ८ 'मैं स्वयं पराक्रमी और बाहुबलसम्पन्न हूं । यवन लोगोंको सहज ही हरादेनेकी शक्ति रखता हूं । अन्य राजाओंसे मिलकर मैं अपने आत्मगौरवको नहीं घटाना चाहता । हर्षदेवने मंत्री से कहाइसीको विपत्तिकाल की विपरीत बुद्धि कहते हैं । छोटेसे कौशलराजको हराकर तथा समुद्रतटके दुर्बल राजाओंको जीतकर कलचुरि राजा बहुत अभिमानी हो गया है । "" इस समय चोलराज्य में वीरनारायण या परान्तकदेव राज्य करते थे । उन्होंने केरल - राजकुमारीसे विवाह करके, विशेषकर केरलपतिकी सहायतासे पाण्ड्यराजको पराजित किया था, तथा एक बार लंकातक विजय - यात्रा करके वहांके राजा पंचम कश्यपको हराया था । हर्षदेवको विश्वास था कि वीरनारायण समस्त दक्षिण प्रदेशका सार्वभौम राजा हो सकता है । इसलिए उसने उसकी विजयी यात्रापर आनन्द प्रकाश करके अपनी सहानुभूति प्रकट की थी । परन्तु वीरनारायणके पत्र में केवल यही उत्तर लिखा था, -- “ उत्तर भारत बहुत दूर है । |" तब हर्षदेवने विचारा कि मैं एक बार समीप वत्त राजाओंसे स्वयं मिलूं और उनकी इच्छा देखूं, पीछे जो कुछ उचित जँच पड़ेगा किया जायगा । ३ प्रगल्भा । लूनी नदीका जल बहुत निर्मल और शीतल है । अजमेर प्रान्त में इस समय जहां पर तारागढ़ है उसकी दक्षिण दिशासे होकर एक समय ,

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