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फूलोंका गुच्छा।
आज पुनर्बार चित्र-परिक्षाका दिन है । राजा राजवेश धारण करके रानीकी स्वहस्तग्रथित पुष्पमालाको कण्ठमें धारणकर सिंहासनपर विराजमान हैं । पीछे चिककी ओटमें राजवंशीय महिलाओंके बैठनेकी जगह है।
इस बार न मालूम क्या सोचकर छविनाथ चित्र-परीक्षा देखने आया है। राजसभामें एक ओर दर्शकोंके बैठनेका स्थान है, वहांपर ही वह बैठा है। परन्तु किसीने उसे पहचाना नहीं ।
राजाके सन्मुख चित्र रक्खे गये । सब लोग आजके फैसलेको जाननेके लिये उत्सुक हो रहे हैं । विचार आरंभ हो गया। ऐसे समयमें छविनाथकी दृष्टि राजमहलके कक्षमें लटकी हुई एक तसबीरके उपर पड़ी । वह धीरेसे उठा और तसबीरकी ओर अग्रसर हुआ । किसीने भी उस ओर लक्ष्य नहीं किया । सब लोग चित्रपरीक्षा देखनेमें व्यस्त हो रहे हैं । राजाने एक एक करके सब चित्र देखे । अंतमें उन्होंने एक चित्रको उठाकर अपने हाथमें लिया ही था कि इतनेमें 'चोर ! चोर ! ' शब्दसे सभामंडप गूंज उठा । राजाने देखा कि दो पहरेवाले एक आदमीको बाँधे हुए लिये जाते हैं । पहारेवालोंने राजासे निवेदन किया कि “महाराज, यह मनोहरका चित्र चुरानेके लिए आया था।"
राजाने स्थिर दृष्टिसे छविनाथके आपत्तिग्रसित मुखका निरीक्षण किया। वह सिर झुकाये स्थिर भावसे खड़ा है । उनके चहरेपर भयका नाम भी नहीं है । दर्शक लोगोंके कोलाहलसे सभामंडप विकम्पित हो उठा। राजाके कटाक्षपातसे कुछ देरमें शान्ति स्थापित हुई ।
राजा-(बंदीसे) तुमने महलमें क्यों प्रवेश किया ? बंदी-( निर्भय मनसे ) चित्र देखनेके लिए ।
राजा कुछ कहा ही चाहते थे कि इतनेमें मनोहरके पिताने आकर कहामहाराज, यह वही चित्रकार है, जिसने मेरे लड़के मनोहरका चित्र अंकित किया था।
दशकोंमें सन्नाटा छागया-सभास्थल निस्तब्ध हो गया । लोग उत्कंठित होकर फैसला सुननेकी प्रतीक्षा करने लगे। ___ बंदी बंधनमुक्त कर दिया गया। राजाने सिंहासनसे उठकर रानीके हाथकी गूथीहुई पुष्पमाला अपने कण्ठसे उतारकर छविनाथके गलेमें पहना दी।