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विचित्र स्वयंवर
थी । उसने कुमार नायकासंहको पुकार कर कहा, कुमार, आप अङ्गराज्यके पुराने मित्र हैं । इस समय आपको मेरी एक बात माननी होगी । "
कुमार नायकसिंहने प्रसन्नतापूर्वक कहा - " मैं आपकी आज्ञा पालन करने के लिए तैयार हूं।"
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मन्द्रा — राजधानीसे बाहर जानेके केवल दो ही रास्ते हैं । अभी थोड़ी ही देर पहले बौद्ध भिक्षु कुमारी सत्यवतीको लेकर भागा है । यह तो नहीं मालूम कि वह किस रास्ते गया है; परन्तु गया है इन्हीं दो रास्तों में से किसी एक रास्ते से । अभी घड़ीभर पहले ही किशनप्रसादने मुझे इसकी सूचना दी है । अतएव राजधर्मके अनुसार उन दोनोंको रोकना हमारा कर्तव्य है । एक रास्तेसे तो मैंने किशनप्रसाद खजांची और रुद्रनारायण सेनापतिको चार होशयार सैनिकोंके साथ भेज दिया है, अब एक रास्ता और बाकी है । आपकी शूरवीरताकी मैंने बहुत प्रशंसा सुनी है, इस लिए मैं चाहती हूं कि इस दूसरे रास्तेसे आप ही जावें और भिक्षु तथा सत्यवतीको कैद कर लावें । आप घोड़े पर सवार होकर अकेले ही जाइए । जरूरत होगी तो मैं भी आपकी सहायता करूंगी |
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कुमार नायक सिंहने एड लगाकर अपना घोड़ा छोड़ दिया । मन्द्राको घबड़ाई हुई और चिन्तित - सी देखकर नायक सिंहके मनमें बारबार यह प्रश्न उठने लगा कि बौद्ध भिक्षुके मार्ग में मन्द्रा क्यों ?
काली रात है । नैश वायु दूरवर्ती पर्वतमालासे टकराकर अरण्यको व्याप्त कर रही है । तारे छिटक रहे हैं । पूर्वकी ओरके आकाश में बादलोंके कई सफेद सफेद टुकड़े इधर उधर बिखर रहे हैं ।
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शरण भैया, मालूम होता
रहे हैं ।"
लगभग एक कोस चलकर सत्यवतीने कहा, है कि पीछेसे अपने पकड़नेके लिए घुड़सवार आ भिक्षुने हँसकर कहा, " सत्यवती, मैं अपने जीवन में ऐसे बहुत से घुड़सवार देख चुका हूं - उनका मुझे जरा भी भय नहीं; भय है तो तुम्हारी केवल रक्षाका । इस समय बस एक ही उपाय है कि इस ऊंचे पर्वतकी बायीं ओरसे एक दूसरा रास्ता गया है, तुम उसी रास्ते से भागो । मैं उन सबको हटाकर तुम्हारे पास आ जाऊंगा ।सत्यवती भयके मारे कुछ न कह सकी और बतलाये हुए रास्ते से भागी । थोड़ी ही देर में चार सवारोंने और सेनापति रुद्रनारायणने आकर भिक्षुको घेर लिया । केवल किशनप्रसाद घोड़े पर चढ़े हुए खड़े रहे ।