Book Title: Fulo ka Guccha
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 46
________________ विचित्र स्वयंवर | ४१ सेनापति - राजकुमारी मन्द्राने आज्ञा दी है कि यह बौद्धभिक्षुक आपके यहां सात दिन तक कैद रहे । देवदत्त - इसके लिए कोई पहरेदार भी रक्खा जायगा ? सेनापति — न ! देवदत्त- - तब तो बड़ी मुश्किल होगी ! यदि कहीं भाग गया तो ? सेनापति-— यदि भाग जायगा, तो इसके साथ आपका यह जटाधारी मस्तक भी चला जायगा ! इसलिए इसे किसी तरह अपने तन्त्रमन्त्रबल से बाँधकर रखिएगा । सेनापति चला गया । देवदत्तने भिक्षुकी ओर देखा । उस देवतुल्य सुन्दर युवाकी मूर्ति देखकर उसे विश्वास होगया कि भिक्षु भाग जानेवाला आदमी : नहीं । इसके बाद उसने कुछ सोचकर पुकारा- “ सती !" सत्यवती झरोखे मेंसे देख रही थी । शीघ्र ही बाहर होकर नीचा सिर किये हुए बोली, “ कहिए, क्या आज्ञा है ? " ८८ देवदत्त - यह बौद्ध भिक्षु राजकुमारीकी आज्ञासे सात दिनके लिए अपने यहां कैद रक्खा गया है । इसलिए इसकी देखरेख रखनेका भार तुम्हें सोंपा. जाता है । सत्यवतीने हँसकर कहा— अच्छा, किन्तु यदि यह भाग गया तो ? देवदत्त — यह वामनदास के बराबर न दौड़ सकेगा । उसको जरा मेरे : पास बुला लाओ । पिता की आज्ञा से वामनदासने रातको पहरा देना स्वीकार किया । दिनकी. देखरेख का भार सत्यवती पर रहा । लग गया । सत्यवती भाई-बहिनको भिक्षुकी देखरेख का भार सौंपकर देवदत्त मन्त्र जपनेके लिए फिर घरमें चला गया और वामनदास अपने वेदपाठमें साहस करके भिक्षुके सामने खड़ी हो गई और बोली, पुकारा करूं ?” 66 तुम्हें मैं क्या कर भिक्षु — कुमारी, मैं तुम्हारी हथेली देखना चाहता हूं । सत्यवतीने आदरपूर्वक अपनी हथेली आगे कर दी । भिक्षु उसे अच्छी तरह देखकर विस्मयसागर में डूब गया । ऐसा मालूम होता था कि उसे कोई पुरानी बात, या कोई पुराना टूटा हुआ बन्धन, या कोई

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