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विचित्र स्वयंवर |
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सेनापति - राजकुमारी मन्द्राने आज्ञा दी है कि यह बौद्धभिक्षुक आपके
यहां सात दिन तक कैद रहे ।
देवदत्त - इसके लिए कोई पहरेदार भी रक्खा जायगा ?
सेनापति — न !
देवदत्त- - तब तो बड़ी मुश्किल होगी ! यदि कहीं भाग गया तो ?
सेनापति-— यदि भाग जायगा, तो इसके साथ आपका यह जटाधारी मस्तक भी चला जायगा ! इसलिए इसे किसी तरह अपने तन्त्रमन्त्रबल से बाँधकर रखिएगा ।
सेनापति चला गया । देवदत्तने भिक्षुकी ओर देखा । उस देवतुल्य सुन्दर युवाकी मूर्ति देखकर उसे विश्वास होगया कि भिक्षु भाग जानेवाला आदमी : नहीं । इसके बाद उसने कुछ सोचकर पुकारा- “ सती !"
सत्यवती झरोखे मेंसे देख रही थी । शीघ्र ही बाहर होकर नीचा सिर किये हुए बोली, “ कहिए, क्या आज्ञा है ? "
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देवदत्त - यह बौद्ध भिक्षु राजकुमारीकी आज्ञासे सात दिनके लिए अपने यहां कैद रक्खा गया है । इसलिए इसकी देखरेख रखनेका भार तुम्हें सोंपा. जाता है ।
सत्यवतीने हँसकर कहा— अच्छा, किन्तु यदि यह भाग गया तो ?
देवदत्त — यह वामनदास के बराबर न दौड़ सकेगा । उसको जरा मेरे : पास बुला लाओ ।
पिता की आज्ञा से वामनदासने रातको पहरा देना स्वीकार किया । दिनकी. देखरेख का भार सत्यवती पर रहा ।
लग गया । सत्यवती
भाई-बहिनको भिक्षुकी देखरेख का भार सौंपकर देवदत्त मन्त्र जपनेके लिए फिर घरमें चला गया और वामनदास अपने वेदपाठमें साहस करके भिक्षुके सामने खड़ी हो गई और बोली, पुकारा करूं ?”
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तुम्हें मैं क्या कर
भिक्षु — कुमारी, मैं तुम्हारी हथेली देखना चाहता हूं ।
सत्यवतीने आदरपूर्वक अपनी हथेली आगे कर दी । भिक्षु उसे अच्छी तरह देखकर विस्मयसागर में डूब गया । ऐसा मालूम होता था कि उसे कोई पुरानी बात, या कोई पुराना टूटा हुआ बन्धन, या कोई