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फूलोंका गुच्छा।
श्राद्ध और सतीत्व धर्मका सत्तानाश किया जाता है, तथा निःसहाय और मूक प्राणियोंको बलि चढ़ाकर पापको सहारा दिया जाता है । कुमारी मन्द्रा, कालीपूजाकी फिरसे प्रतिष्ठा कराके ये सब लोग बिनासमझे बूझे घोर तामसिक वृत्तिको अपनी ओर खींचनेका उद्योग कर रहे हैं। तुम्हें चाहिये कि इस जीवबलिकी जगह आत्मबलिकी शिक्षा देकर पूजाप्रतिष्ठा करो । यह आत्मबलि ही सच्ची कालीपूजा है । यह बौद्ध भिक्षु भी तुम्हारी इस पूजाका प्रसाद लेकर खायगा।
यह व्याख्यान सुनते सुनते बहुतसे लोग फिर ऊँघने लगे । राजा साहबका उनमें पहला नम्बर था। मन्द्राने कहा, "यह आदमी पागल है, इसको देवदत्तपुजारीके घरमें कैद करके रक्खो ।"
बूढ़ा देवदत्त पुजारी घोर शाक्त था। उसका एक वामनदास नामका पुत्र था, जिसकी उमर लगभग १५ वर्षके होगी। वह एक बिल्ववृक्षके नीचे बैठकर वेदपाठ करता था। उसकी बूढ़ी माता हरिनामकी माला जपा करती थी। पुजारीके घर में इन तीन जनोंके सिवा एक सत्यवती नामकी लड़की और थी।
सत्यवती देवदत्तकी कन्या है; परन्तु कैसी कन्या है यह सबको मालूम नहीं । कई लोगोंका कथन है कि वह किसी क्षत्रियकी कन्या है । जब वह छोटी सी थी, तब देवदत्त उसे मिथिलासे ले आया था। कोई कोई कहते हैं कि एक बार देवदत्त माघी पूर्णिमाके मेलेमें गया था और वहां इसे गंगा नदीके तटपर अकेली पड़ी देखकर उठा लाया था । सत्यवतीकी अवस्था इस समय सत्रह वर्षकी है।
सत्यवती बहुत ही सुन्दरी है । उसका मुखकमल सदा ही प्रफुल्लित रहता है । घरके कामकाजोंमें वह बड़ी चतुर है । सेवाशुश्रूषा करना ही उसका व्रत है। उसी व्रतमें उसका जीवन और यौवन वर्द्धित और पालित हुआ है।
सेनापति रुद्रनारायणसिंह हाथमें नंगी तलवार लिये हुए देवदत्तके घर पहुंचा । कैदी मिक्षु उसके साथ था।
देवदत्त उसे देखकर बाहर आंगनमें आ खड़ा हुआ।