Book Title: Fulo ka Guccha
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 31
________________ फूलका गुच्छा । उड़-उड़कर अपूर्व सौन्दर्य दरसाते हैं । उसके सुदीर्घनेत्र दो फूले हुए नील कमल के समान सुन्दर और भावपूर्ण दिखाई देते हैं । ૨૮ छविनाथ देखते देखते नदीपर आ पहुंचा । वह एक सुन्दर तसबीर खींचना चाहता था, किन्तु उसे मनके अनुसार आदर्श न मिलता था । बालकको देखकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ - उसे अपने मनके अनुसार आदर्श मिल गया । वह धीरे धीरे उसके पास जाकर पूछने लगा छवि ० - तुम्हारा क्या नाम है ? बालक - ( हँसकर ) मनोहर | छविनाथ मन-ही-मन बड़ा प्रसन्न हुआ कि नाम भी ठीक है— मनोहर यथार्थ में मनोहर है । अनेक यत्न और प्रलोभनसे उस बालकको उसने एक पत्थरपर बिठाया । बालक हँसते हँसते कहने लगा, भाई, यह तसवीर मुझे दोगे ? ” 66 छवि–चित्र तैयार होनेपर यही तसबीर मैं तुम्हें दूंगा, परन्तु इसे तैयार करनेमें दो तीन दिन लगेंगे, तुम रोज ठीक समयपर यहां आ जाया करो | बालक - ( प्रसन्न होकर ) बहुत अच्छा । छविनाथने पाकेटसे कलम और रंग निकाल कर चित्र खींचना प्रारंभ किया । तीसरे दिन चित्र तैयार हो गया । बालक उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और चित्रकारका हाथ पकड़कर बड़े आग्रहसे उसे अपने घर ले गया । मनोहरका पिता भी इस मनोहर चित्रको देखकर मुग्ध हो गया - वह मन-ही-मन कहने लगा -- अहा ! मेरे लड़केका चित्र इतना सुन्दर ! पहले चित्रकी ओर देखकर और फिर अपने लड़केका मुख निरीक्षण करके वह चकित हो रहा । वह आनंदमें इतना मग्न हो गया कि छविनाथकी अभ्यर्थना करना भी भूल गया । ( ३ आज नववर्षका प्रथम दिन है । राजसभा लतापुष्पोंसे सुसज्जित हो रही है | सुन्दर चन्द्रातपमण्डित सभास्थल के मध्य में राजसिंहासन सुशोभित है । दाहिनी ओर एक सुंदर गलीचेपर न्यायार्थी चित्रकारगण अपने अपने चित्र लिये हुए बैठे हैं। सामने की ओर दर्शकोंके बैठनेकी जगह है ।

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