________________
फूलका गुच्छा ।
आज पुनर्बार चित्र परिक्षाका दिन है । राजा राजवेश धारण करके रानीकी स्वहस्तग्रथित पुष्पमालाको कण्ठमें धारणकर सिंहासनपर विराजमान हैं । पीछे चिककी ओट में राजवंशीय महिलाओंके बैठनेकी जगह है ।
३०
5
इस बार न मालूम क्या सोचकर छविनाथ चित्र - परीक्षा देखने आया है । राजसभा में एक ओर दर्शकोंके बैठनेका स्थान है, वहांपर ही वह बैठा है । परन्तु किसीने उसे पहचाना नहीं ।
राजाके सन्मुख चित्र रक्खे गये । सब लोग आजके फैसलेको जाननेके लिये उत्सुक हो रहे हैं । विचार आरंभ हो गया। ऐसे समय में छविनाथकी दृष्टि राजमहल के कक्षमें लटकी हुई एक तसबीरके उपर पड़ी । वह धीरे से उठा और तसबीरकी ओर अग्रसर हुआ । किसीने भी उस ओर लक्ष्य नहीं किया । सब लोग चित्रपरीक्षा देखने में व्यस्त हो रहे हैं । राजाने एक एक करके सब चित्र देखे । अंत में उन्होंने एक चित्रको उठाकर अपने हाथमें लिया ही था कि इतनेमें 'चोर ! चोर ! ' शब्द से सभामंडप गूंज उठा । राजाने देखा कि दो पहरेवाले एक आदमीको बाँधे हुए लिये जाते हैं । पहारेवालोंने राजासे निवेदन किया कि " महाराज, यह मनोहरका चित्र चुरानेके लिए आया था ।
""
राजाने स्थिर दृष्टि से छविनाथके आपत्तिग्रसित मुखका निरीक्षण किया । वह सिर झुकाये स्थिर भावसे खड़ा है । उनके चहरेपर भयका नाम भी नहीं है। दर्शक लोगोंके कोलाहल से सभामंडप विकम्पित हो उठा । राजाके कटाक्षपात से कुछ देर में शान्ति स्थापित हुई ।
राजा - ( बंदीस ) तुमने महल में क्यों प्रवेश किया ?
बंदी - ( निर्भय मनसे) चित्र देखने के लिए |
राजा कुछ कहा ही चाहते थे कि इतनेमें मनोहर के पिताने आकर कहामहाराज, यह वही चित्रकार है, जिसने मेरे लड़के मनोहरका चित्र अंकि किया था ।
दर्शकों में सन्नाटा छा गया - सभास्थल निस्तब्ध हो गया । लोग उत्कंठित होकर फैसला सुनने की प्रतीक्षा करने लगे ।
बंदी बंधनमुक्त कर दिया गया । राजाने सिंहासनसे उठकर रानीके हाथकी थी पुष्पमाला अपने कण्ठसे उतारकर छविनाथके गले में पहना दी ।