Book Title: Fulo ka Guccha
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ कञ्छुका। २३ लूनीर नदीकी धारा बहती थी। बड़े प्रातःकाल कुमारी कञ्छुकाने नदीके शीतल जलमें स्नान करके देवमंदिरमें प्रवेश किया । इस समयके पाठकोंको कञ्छुका नाम अच्छा न लगेगा; परन्तु क्या किया जाय, कवित्वप्रिय पाठकोंके लिए ऐतिहासिक नामका परिवर्तन नहीं हो सकता । नाम कैसा ही हो, पर कुमारी कञ्छुका थी बहुत सुन्दरी । क्योंकि उसके देवमन्दिरमें प्रवेश करते ही, एक सौम्यमूर्ति संन्यासी युवक उसे देखकर देवपूजाका मंत्र भूलकर मन-ही-मन यह पाठ पढ़ने लगा था, कनककमलकान्तैः सद्य एवाम्बुधौतैः श्रवणतटनिषक्तैः पाटलोपान्तनेत्रैः। उपसि वदनविम्बैरंससंसक्तकेशैः श्रिय इव गृहमध्ये संस्थिता योषितोऽद्य ॥ इस समय अजमेरमें नये चौहान वंशका राज्य था । राजा गोवकके पुत्र चन्दन उस समय सिंहासनारूढ़ थे । कुमारी कच्छुका राजा चन्दनकी बहिन थी। __सुन्दरीने ईश्वरके चरणोंमें अंजली प्रदान करके संन्यासीके चरणोंपर अपना मस्तक नवाया । संन्यासी चकित हो उठकर कहने लगा- मैं आपका प्रणाम ग्रहण करनेके अयोग्य हूं, विशेषकरके इस देवमन्दिरमें ईश्वरके सिवा दूसरा कोई वंदनीय नहीं हो सकता।" कुमारीने मन्दहास्यसे कहा-"जब स्वयं चौहाननरेश आपके भक्त हैं, तब यदि उनकी छोटी बहिनने आपको प्रणाम किया तो इसमें हानि क्या हुई ? " संन्यासी यह 'परिचय पाकर मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुआ। ___ राजकुमारी यद्यपि प्रगल्भा मालूम होती है; परन्तु उसके दोनों नेत्र मुग्धाके नेत्रोंके समान हैं । संन्यासीकी ओर देखकर बातचीत करनेके समय उसके दोनों पलक ज्यों ही कुछ ऊपर उठकर और सुकोमल दृष्टिको ढककर अवनत हुए, त्यों ही संन्यासीका मस्तक घूम गया । संन्यासीने देखा कि उसके प्राणोंने प्राचीन वक्षोगृह छोड़कर युवतीकी कुछ खुली हुई दृष्टिके मार्गसे सौन्दर्यके नवमन्दिर में प्रवेश किया है । वह चिन्ता करने लगा कि अब यदि यह मनोमोहिनी नेत्रोंके पलक खोल करके फिर देखे भी, तो भी, इसमें सन्देह ही है कि गये हुए प्राण फिर लौटेंगे या नहीं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112