Book Title: Fulo ka Guccha
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 21
________________ फूलोंका गुच्छा। चान सकूँगा, आज उन हाथोंसे तुम मुझे बाहर आनेके लिए निमंत्रण कर .. जाओ। सुभद्राने अपने कांपते हुए हाथोंको ताखमेंसे आगे बढ़ा दिया । वसन्तने उन्हें अपने आतुर हाथोंसे कसकर जकड़ लिया; परन्तु उसके आकुल ओष्ठ उतनी दूर न जा सके। __ दूसरे दिन सबेरे ही वसन्तकी निश्चित निद्रामें व्याघात डालकर कारागारके. किवाड़ आर्तनाद करते हुए खुल पड़े। स्वयं काशीराजने अवन्तीके मंत्रीके सहित कारागारमें प्रवेश किया। काशीराजने वसन्तके चरणोंमें पड़कर हाथ जोड़ प्रार्थना की कि महाराज, मेरे अज्ञात अपराधोंको क्षमा कीजिए। मंत्रीने अभिवादन करके कहा-चक्रवर्ती महाराजकी जय हो। वसन्त राजाको अभयप्रदान करके कारागारसे बाहर हुआ और थोड़ी ही. देर में स्नानादि करके वस्त्रभूषणोंसे सुसज्जित हो गया। ___ काशीराजने अपनी भयभीत और लज्जित कन्याओंको वसन्तके सन्मुख बुलवाया। वे सब एक एक आई और दूरसे प्रणाम करके एक ओर सिर नीचा किये हुए खड़ी हो गई । सबके पीछे यमुना आई। उसने लज्जासे सकुचते हुए. समीप जाकर प्रणाम किया। उसकी सद्यःस्नाता केशराशिने बिखर कर वसन्तके दोनों पैरोंको ढंक लिया । केशोंकी कोमलता और आर्द्रताने वसंतके हृदयको पानी कर दिया । उस समय उसने यमुनाका मस्तक स्पर्श करके मानों यह चाहा कि मैं हृदयकी गहरी प्रीतिके जलसे अपने पिछले अन्याय्य आचरणको धो डालूं। ___ काशीराजने कहा--महाराज, आपको इन अबोध बालिकाओंका अपराध क्षमा करना पड़ेगा। वसन्तने कहा-मैंने इन सबको आपकी इस उपेक्षिता तिरस्कृता कन्याके गुणोंसे प्रसन्न होकर क्षमा कर दिया है और मुझे स्वयं इससे क्षमा मांगना है । . यह कहकर वसन्तने अन्य राजकुमारियोंकी ओर न देखकर केवल यमुनाको लक्ष्य करके कहा-यमुना, तुम मेरे पिछले अपराधोंको क्षमा कर दो।

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