Book Title: Digambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 16
________________ O सचित्र खास अंक. ६ ...... हजारो रुप्यानो भोग !! काई रंगबेरंगीज ! जे वांचे तेनुं मन ललचाय ...-४००-५० चित्रो अने छ सात भाषाना । अने तरत ग्राहकज थई जाय ! भेटोपण थोडी विद्धतापूर्ण लेखोथी भरेलो अंक काढीने हझारो हिंदी ने थोडी गुजराती भाषानी एटले बने रुपीयानो प्रथम तबकेज भोग ! आपवानी भाषाना ग्राहकोनुं मन संतोष थाय. लवाजममा हिम्मत तमेज करो वा ! मारी तो जीकर न पोणावे रुपीया तेतो मात्र नामनाज छे. आखा चाले ! पण वाणीयो लेटे ते कारणेज ! एक वरसना अंको अने भेटोना पुस्तकोनो ढगलो खरची चार लेवानी फिकर राखेज, तेम तमो एकठो करीए तो खास्सुं चार पांच स्पीयाना पण अंक काढी ग्राहकोने गांडाघेला बनावी, पुस्तक करतां पण वधारे साहित्य एकडं थाय. ललचावी, दोडादोड करावी मुको छो! जेवू गजब करे छे बा गजब !! अने आ नवा जादुज तो! तमारा आटला बधा ग्राहक वधी वरसमां पण पाछी एवीज भेटो अने एथी पण जवान कारण, पण मने तो एज लागे छे अने सारं वांचन पुरं करवानी हिंम्मत भीडे , ए तमारा जुना पुराणां वडील बंधु बळना पण अजबज केनी? दर वर्षे भेट आपवावाळा करे छे, तेनुं पण एज कारण हशे ! नानु थई पण क्याथी मळे छे ? ने एटला लेख लखवा. आगळ वधे ते केम खमाय ! वाळा पण नवरा ! क्यांथी नीकळे छे !! - उपलेक जोवाथी लाभ शो ? हुँ पण सचित्र! वारु ! पण वांचको ! ए मोटो थोथो अने ओहो ! पण अधिपतिसाहेब मारा 'उपर पोथो तमारा हाथमां तो आव्यो, पण एने पण फिदा थई गया ते तमे जोयु के ? हुं रोज पुरेपुरो वांचशो के राम राम ! फक्त चित्रो कह्या करतो के तमे चित्रोवाळो अंक कहाडोने जोइनेज पाणीचुं ! अरे एवी नादानी कोई नहिं आम भपको करो ने तेम फेशन करोत्यारे करता हों ! बंदो तो शब्देशब्द वांच्या वगर मारा लेख शुं तमने पसंद नथी के हुं भपका नहिं छोडवानो! तमोने फुरसद नहिं होय तो वगर रही जाउं ? मारा आवा टाणा तेमने रोज थोडं थोडं स्वाध्याय तरिके वांची पुरो सचोट लाग्या अने जुओनी लेखने मथाळे खासु वांचजो, पण गांचजो जरुर ! वंचावजो पण जरूर !! रमकडा जेवू बाणवाळु चित्र गोठवी दी . अने मगजमां भरीने सुधरजो पण जरुर !!! त्यारेज संपादकजीनी बंदा हवे खुश खुश थई गया ! केमके मार गरीबर्नु पण आटलं बधुं मान ? हवे तो बस ! बहोळी मेहेनतनुं सार्थक ! नहिं तो वर्षादगें। पाणी पग धोवामां जाय तेमां लाभ शु ? ॐ हुं पण तमारी हजुरमा दर महिने आव्याज कर- वानो अने तमने दिलगीर हशो तो पण हसाव्या करवानो ! बस ! परमात्मा साजो ताजो गजब करे छ बा गजब !! संपादकजी, आप वचनना साचा तो खरा ! राखे एटलुज काम !! गया वर्षमां भेटो पण पुरी आपीने लेख पण गया मामटापस जापान लस पण . .. . .

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