Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 331
________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥२३४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir दट्टु देविं एयं भीमं न खमा इमा वणियधूया । इय चीवरेण बंधइ एसो पियदसणानयणे ॥ २४३ ॥ तीए सुयं सयं गहिय चंडसेणो उ दिट्ठिसन्नाए । आणावर दइवाओ पढमं चिय बंधुदत्तं तो ॥ २४४ ॥ देवीपएस पाडिय सुयमप्पिय रत्तचंदणाइ तओ । अच्चसु | देविं पियदंसणेत्ति भणिया इमा तेण ॥ २४५ ॥ निचिसो निर्चिसं कोसाओ कट्टिउं सयं तु ठिओ । पियदंसणा उ दीणा चिंत | मह जीवियं धिद्धी || २४६ ॥ पियदंसणाकए नरबलीकओ देवयाइ इय अयसो । पावेण समं मइ भो पसरिस्सर रक्खसी इव मे || २४७ || जाणित्तु बंधुदत्तो विसुद्धबुद्धी समागयं मरणं । कुणइ नवकारगुणणं दुहदलणं दुविहसिवजणणं ॥ २४८ ॥ उक्तं च"संग्राम सागर करीन्द्रभुजंगसिंहदुर्व्याधिवाहुरिपुबंधनसंभवानि । चौरग्रहभ्र मनिशाकरशाकिनीनां, नइयंति पंचपरमेष्ठिपदैर्भयानि ॥ २४१ ||" तं सोउ झडित्ति तओ अहह अकजं सुसावयविणासो । इय जंपिरीइ पियदंसणाएँ उग्धाडिया दिट्ठी || २५० ॥ दठ्ठे सपियं जंपर पल्लिवई भाय ! सच्चसंधोऽसि । जेणेस बंधुदत्तो तुह भइणिवई इहं पत्तो ॥ २५१ ॥ पडिओ पासु त पल्लिवई बंधुदत्तमिय भणइ । अन्नाणकयवराहं सहस्र समाइससु तं सामि ! || २५२ ॥ किमिति बंधुदचेण पुच्छिओ भइ चंदसेोवि । उद्धाइयपअंतं तं वृत्तंतं समग्गंपि ।। २५३ || अह भणइ बंधुदत्तो पल्लिवई भद्द ! जुजइ न हिंसा । सा सयलदुइ| निहाणं जेणुत्ता सव्वसत्थेसु || २५४ || भणितं च महाभारते अनुशासनिकपर्वणि, बृहस्पतिः - अहिंसकानि भूतानि, दंडेनैव निहंति यः । आत्मनः सुखमन्विच्छन्, न स प्रेत्य सुखी भवेत् || २५५ || भीष्मः - पशवो ये तु हिंसंति, गृद्धा द्रव्येषु मानवाः । मृतास्ते नरकं यान्ति, नृशंसाः पापकारिणः || २५६ ॥ व्यासः शांतिपर्वणि यावंति रोमकूपानि, पशुगात्रेषु भारत ! । तावद्वर्षसहस्राणि, पच्यते पशुघातकाः ॥ २५७॥ भीष्मः -घातको बध्यते नित्यं, तथा बध्येत बंधिकः । आक्रोष्टा शप्यते राजन्!, द्वेष्टा For Private And Personal बन्धुदतकथा ॥२३४॥

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