Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीदे०
चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३४२ ॥
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अत्र भाष्यं पणिहाणाणि इमाणि य इह कायज्ञाणि निच्छएणेव । पणिहाणंता जम्हा संपूना वंदना भणिया ||१|| ( ८५०) उवएसविसेसाओ इत्तो अहिंगंपि चित्तउत्तीहिं । पयडियभावाइसयं कीरंतं गुणकरं चैव ||२|| (८५१) उक्तं च-मिच्छादंसणमहणं सम्मईसणविसुद्धिहेउं च । चिइवंदणार विहिणा पन्नत्तं वीयरागेहिं ||३|| (७८४) भावुल्लासेण विणा अहिगपवित्ती न हुज धम्मंमि । सो | खलु सुप्पणिहाणं भण्णइ विनायसम एहिं ||४|| (८१३) वंदणपणिहाणाओ सुविसुद्धाओ पवड़माणाओ । सुवइ जिनिंदसमए देवत्तं दद्दुरो पत्तो ॥ २ ॥ ( ८१५) कयमित्थ पसंगेणं एवं पणिहाणसंगया एसा । संपुष्णा उक्कोसा निधिट्ठा वंदना लट्ठा ||६|| (८७४) दर्दुरांकदेवकथा त्वियं
रायगिहे गुण सिलयंमि चेइए अन्नया समोसरिओ । वीरजिणो जा धम्मं कहइ सुरासुरनरसहाए || १|| ता चउसहस्स सामाणिएहि चउगुणाइ आयरक्खेहिं । अग्गमहिसीहि चउहिं नियनियपरिवारजुत्तेहिं ॥२॥ अन्नेहिं बहुदेवीदेवेहि जुओ महाविभूईए । पडुपडद्दनियवाईयरवेण पूरंतओ गयणं || ३ || तत्थेगो वरअमरो पत्तो तिपयाहिऊण वीरजिणं । वन्दित्तु नमसित्ता धम्म कहते भणइ एवं ॥ ४ ॥ अविगलनिम्मलकेवलबलेण सयलंपि मुणह पहू ! तुज्झे । गोयमपमुहमुणीणं नट्टविहिं पुण पयंसेमि ॥ ५ ॥ दव्त्रत्थयंतिकाउं मोणं मुणिपुंगवो विहेसीअ । अप्पडिसिद्धं अणुमयमिय विहिणा नाडयं काउं ॥ ६ ॥ पुणवि नमतो भणिओ सो पहुणा अमरपवर ! जीयमिणं । किञ्चमिणं तो हिट्ठो एसो पत्तो सठाणंमि ||७|| अह नमिय जिणं पुच्छइ गोयमसामी सुरेण पहु! इमिणा । किं कासि पुरा सुकयं जं लद्धा एरिसी रिद्धी ||८|| जिणवंदणपणिहाणा इमस्स रिद्धी इमत्ति जिणभणियं । पुणरवि गोयमपुट्ठो तच्चरिअं कइइ इअ सामी || ९ || इह रायगिहे नगरे मह पासे गहिय सुद्धगिहिधम्मो । नंदमणिआरसिट्ठी पोसहसालाइ कइयावि
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दर्दुरांक
कथा
॥ ३४२ ॥

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