Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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शशिनृप
Shri V श्रीदे० चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥४२५॥
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Acharya Shri Ka | काउस्सग्गोवगयं न उणो तं वणवराहति ॥७॥ किमिणति चिंतिऊणं तुरियं तुरगाउ ओयरिताणं । भत्तिभरनिम्भरो सो पडिओ
मुणिणो चरणजुयले ॥८॥ पारियउस्सग्गेणं उचिए समयंमि तेण वरमुणिणा । दत्तासीसो सीमुच्च तस्स पासे स आसीणो ॥९॥ | तक्कहियं धम्मकहं सवित्थरं सोउ गुरुपमोयजुओ। मनंतो कयकिच्चं अप्पं गिण्हेइ गिहिधम्म ॥१०॥ पुच्छेइ पुणो भयवं! को | एसो सूयरुत्ति आह मुणी । पुब्बभववेरिओ खुद्दवंतरो तं छलिउकामो ॥११।। कयवणवराहरूवो बहुरूवेभाइयं तु पयडित्था । इह जा पत्तो अक्खुहियचित्तं नाउं निलुको य ॥ १२ ॥ पुण पुढे कुमरेणं हिट्ठामुहलंबमाणभुयजुयलो। को एस तवविसेसो भयवं ! | किमिमस्स परिमाणं ॥१३॥ "भणइ मुणी भो निवसुय! दब्बुसियप्पमुहबहुविहविगप्पो। एसंतरंगरूवो काउस्सग्गत्ति पवरतवो॥१४॥ नवरमिमो दुविगप्पो चिट्ठाए अभिभवे य नायब्यो । चिट्ठाएऽणेगविहो कालपमाणं च से बहुहा ॥१५॥ तथाहि-देसिय राइयपक्खिय | चाउम्मासिय तहेव वरिसे य । नियया काउस्सग्गा इरियाइसु अनियया हुंति ॥१६॥ सायसयं गोसद्धं तिनि सया पक्खियंमि ऊसासा। पंचसया चउमासे अट्ठसहस्सं च वारिसिए ॥१७। अनिययउस्सग्गेमु य इरियाइसु पंचवीस ऊसासा । पट्ठवणपडिकमणाइसु उद्देसाईसु सगवीसा ॥१८॥ अभिभविउं दुक्कामं कुद्धेण सुराइणा व अमिभविओ। जं कुणइ काउसग्गं सो अमिभवकाउसम्पत्ति ॥१९॥ कालपमाणं च इहं उक्कोसं वरिसमवहिमासु । बाहुबलिप्पमुहाणं जहन्नमंतोमुहुत्तं तु ॥२०॥ नवरं अमिभवउस्सग्गवत्तिणो अगणिसप्पमाईहिं । खोभेवि अकयकजस्स जुञ्जए नेव परिचइडं ॥२१॥ वासीचंदणकप्पो जो मरणे जीविए य समदरिसी। देहे अ अपडिबद्धो काउस्सग्गो हबति तस्स ॥२२॥ तिविहाणुवसग्गाणं दिव्वाण य माणुसाण तिरियाणं । संममहियासणाए काउस्सग्गो हवइ सुद्धो ॥२३॥" उदिओदयस्स रनो पच्चक्खं फलमिमस्स य तहाहि । इह पुरिमतालनयरे राया उदिओदओ आसी॥२४॥
॥४२५॥
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