Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीदे
चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधी ॥४६०॥
किंच न तुभवि जुत्तं जुत्ताजुत्तोबएसकुसलस्स । परपाणपहाणेणं सपाणपरिपोसणं एवं ॥८॥जह उक्खणिजमाणे पीडा पिच्छेऽवि |मेघरथकथा होज तुह गुरुई। अन्नस्मवि किं न तहा ? मारिजंतस्स का वत्ता ॥८९॥ अनं च भक्खिएणं खणमिताऽणेण तुह भवे तित्ती। एयस्स पुणो वच्चइ जंमो सयलोऽवि एमेव ॥९० ॥ पंचिंदियघाएणं नरए जंतूहिं गंमए तम्हा । खगमित्तसुहनिमितं को जीवे हणइ छुहिओवि ॥९१।। सा पुण छुहा निवत्तइ अवरेणवि भोयणेण जह पित्तं । पवरसियासमणिजंपि किं न पयसा उवसमेइ ? ॥९२।। न य उवसमंति केणवि जियवहपहवाउ नरयवियणाओ। ता मुंचसु जीववहं कुणसु दयं सयलसुहजणयं ॥९३।। सेणोऽवि | भणइ नरवर! सरणं तुह एस आगओ भीओ। किमहं करेमि सरणं कहसु महाभाग ! छुहगलिओ? ॥९४॥ जह रक्खसि दुक्खतं | एयं करुणाइ तह ममंपि न किं । अइदुक्खिअस्स पाणा नूणमिमे मज्झ वचंति ॥९५|| धम्माधम्मविचिनावि चिट्ठए सुट्टिए सरीरंमि। तं नथि जन कुणई वुमुक्खिओ कूरमवि कंमं ॥९६॥ तद्धम्मवत्तयाऽलं अप्पसु मह भक्खभूयमिणमइरा । को धम्मो जं इको रक्खिजइ हमए अवरो? ॥९७॥ न य मज्झ हुज तित्ती कहमवि भुजंतरेहिं जं सययं। सजो सयं हयंजियफुरतमंसासणो अहयं ॥ ९८ ॥ भणइ निवो जइ एवं ता तुह वियरेमि भो नियं मंसं । पारेवएण तुलियं होसु सुही मा तुर्म मरसु ॥९९॥ आमत्तिपरे सेणे तुलाइ एगत्थ ठावइ कपोयं । अन्नत्थ खिवइ राया छित्तुं छित्तुं नियं मंसं ॥१००॥ जह जह खिवेइ मंसं राया उकत्तिऊण नियतणुणो। तह तह भारेण इमो वडइ पारेवओ अहियं ॥ १॥ भारेण वद्धमाणं तं पक्खि पेक्खिऊण अक्खुहिओ। सयमेवारुहइ तहिं तुलाइ राया अतुलसत्तो ॥२॥ तूलारूद सहसा रायाणं द? परिपणो सयलो । हाहारवं कुणंतो आरूढो संसयतुलाए ॥३॥ सामंतमंतिपमुहा सव्वेऽवि भणंति भूवई एवं । अम्हाण अभग्गेणं नाह ! किमेयं समारद्धं ॥ ४ ॥ ॥४६॥
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