Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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________________ Shi l lin Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Katha r i Gyanmandie मेघरथकथा श्रीदे० | नियडंमि नियडिनइतीरे / सोमप्पहकुलवहगो सुरूवनामो सुरो जाओ // 23 // सो एस सुरो संपइ ईसाणिदेण मह पर्ससाए। चैत्यश्री- II विहियाइ मच्छरेणं इहागओ मह परिक्खत्वं // 24 // इय निवकहियं सोउं ते विहगा मुच्छिया महीपडिया / लोएण कया सत्था | धर्मसंघा- | जाईसरणं समणुपत्ता // 25 // अह पभणंति सभासाएँ अम्हेहिं न केवलं तया रयणं / लोभाओ जुज्झमाणेहिं नाह ! हरियं मणुयचारविधौ | जंमं // 26 // इह जमे नरयदुहं नियडंपि निसेहियं तए अम्ह / किं करणिजं अम्हेहिं नाह! इण्हि समाइससु // 27 // तो मेहरहो // 462 / / / | तेसिं देइ सयं अणसणं इमेवि तयं / पडिवज्जिय मरिऊणं उववन्ना भवणवासीसु ॥२८॥रायावि पोसह पालिऊण रजंच पालए सुइरं / मुमरंतो खगचरियं वच्चइ परमं च वेरग्गं // 29 // अह विहरंतो भयवं घणरइतिथंकरो समोसरिओ / तन्त्रमणत्थं पत्तो मेहरहनिवो सपरिवारो // 30 // वंदिय पहुं निसनो धम्म सोउं तओ गिहे गंतुं / रजंमि मेहसेणं ठवइ कुमारं भवविरत्तो // 31 // पहुपासे निक्खंतो संजमजोगेसु निच्चमुज्जुत्तो / इक्कारसअंगधरो दुक्करतवचरणकरणरओ॥३२॥ तित्थयरनामगोयं वीसहि ठाणेहि तह समज्जेइ / सुयविहिणा कुणइ तवं च सीहनिकीलियं नाम // 33 // अह आरुहिउं अंवरतिलयगिरि सो गिरिव थिरचित्तो। काउं तत्थ अणसणं मरि सव्वट्ठमणुपत्तो // 34 // तत्तो चविउं जाओ इह भरहे हत्थिणाउरे एसो / निवविस्ससेणअइरादेवीए संतिनामसुओ // 35 // पंचमचकहरपयं पालिय कालेण गहियसामण्णो / सोलसमधम्मचक्की होऊण इमो सिवं पत्तो // 36 // एवं मेघरथक्षितीशतिलकः श्रीचैत्यसद्वदने, प्रोद्यच्छन्नहमिंद्रचक्रिपदवीमुच्चैर्जिनाधीशताम् / भुक्त्वा प्राप सुधर्मकीर्तिसुभगग्रामाग्रणीस्तत्पदं, तद् भो भव्यजना! जिनार्चनमिह प्रागल्भ्यमभ्यस्यताम् // 37 // इति श्रीसंघस्य प्रतिदिनमवश्यं कृतिविधौ, सुधर्मानुठाने प्रकटमधिकारः प्रथमकः / सदाऽर्हच्छत्यानां विहितविधिवद्वंदनपरः, श्रुतादाम्नायाच प्रकृतविवृतिः पारमगमत् / / 38 // xxxmomo-EXPORRHOKHORAKHRece इति श्रीदेवेन्द्रसूरिशिष्यश्रीधर्मकीर्तिमूरिविरचितायां श्रीसंघाचारटीकायां चैत्यवंदनाधिकारः प्रथमः समाप्तः // 462 // For Private And Personal

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