Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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Acharya Sherle
suri Gyanmandie
मेघरथकथा
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श्रीदे | इह दीवे भारहमि खित्तमि । मलयानामेण पुरी उत्तरसेढीइ वेयड्ढे ॥५३॥ विज्जुरहो तत्थ निवो माणसवेगा पिया य से चैत्यश्री-Il ताण । सीहरहो नाम सुओ वेगवई तस्स वरभञ्जा ॥५४॥ कइयावि भवविरत्तो पुत्तं रज्जे ठवितु सीहरहं । गुरुपासे निकखधर्म० संघान
मिओ विज्जुरहो सिवपयं पत्तो ॥५५॥ विजाहरचकवई कयाइ चिंतइ निसाइ सीहरहो। जंमो मह अकयत्थो जहरने मालईकुसुमं चारविधौ
॥५६॥ जं न जिणो दिट्ठो मे कयाइ नय पूइयो विहरमाणो । वह तंमुहकमलभवा अमयसमा देसणा न सुया ॥५७॥ तो गंतुं ॥४५८॥
सकलत्तो धायइसंडंमि वरविमाणगओ । अवरविदेहे विजए सुवग्गुनामंमि खग्गपुरे ॥ १८॥ नामेण अमियवाहणजिणं तहिं पणमिउं तह निसन्नो । थम्मं सोउं तुट्ठो वंदिय सामि पडिनियत्तो ॥५९॥ जा एइ इत्थ उवरिं ता खलियं तस्स तं वरविमाणं ।। तो तेण नियंतेणं हिट्ठा सहसत्ति दिट्ठोऽहं ॥६०॥ तो सो सबवलेणं कुद्धो उप्पाडिउ ममं लग्गो। ता अकंतो वामो वामकरेणं मए सणियं ॥६१॥ तो विरसमारसंतो सिंहक्कंतं गयंव तं दट्टुं । सरणं मं पडिवना तम्भजा सपरिवारावि ॥६२।। करुणाइ मए मुक्को सो तुट्ठो काउ विविहरूवाणि । भृयाणं सकलत्तो पिए! इमो कुणइ पिच्छणयं ॥ ६३ ॥ इय सोउं विम्हइया पियमित्ता पुणवि पुच्छए रायं । किमणेण कयं सुकयं पुब्धि जेणेरिसी रिद्धी ॥ ६४ ॥ अह पभणइ मेहरहो भरहे पुक्खरवरड्दपुच्वंमि । संघपुरे कुलपुत्तो नामेणं रज्जुगुत्तत्ति ॥ ६५ ॥ दुत्थो परकम्मकरो पइभत्ता तस्स संखिया माया । अनादिणे संघनगे फलहेउं ताई पत्ताई ॥६६॥ पिच्छंति सबगुत्तं नाम मुणिं खयरपरिसमज्झत्थं । भत्तीइ तयं नमिउं तो तप्पुरओ निसन्नाई ॥६७॥ | मुणिणावि तेसि धम्मो विसेसओ साहियो तवपहाणो । जं दुस्थिएसु गुरुयाण होइ वच्छल्लयं गुरुयं ॥१८॥ भत्तीइ पुणो नमिउं भवभयभीयाई ताई पुच्छति । अम्हारिसाण जोगो पावाणवि अस्थि कोवि तवो? ॥ ६९॥ बत्तीसइकल्लाणो नाम
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॥४५
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