Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीदे०
कान्तिश्रीकथा
चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ | ॥४३७॥
MAANINDRA
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Acharya Shri Ka गयणयलमणुलिहतरुइकंतकंतजिणभवणो । वणमझवहंतझरंतनीरनिझरणनियरजुओ॥४॥ जुयलट्ठियसुरकिंनरसिद्धसमारद्धसुद्धगंधच्चो । गंधवपणइणीजणमुच्छाविजंतवीणसरो ॥५|| सरसहरिचंदणदुमसुगंधपूरंतसयलदिसिविवरो । वररयणनियरचिंचइयसिहरसयसंकुलो सम्मो ॥६॥ अह भरहनिवस्स सुओ पढमो पढमस्स तह जिणिदस्स । पुंडरियावरनामो गणहारी सिरिउसहसेणो
॥७॥ विहडियजगजगडणमयणसुहडभडवीयपरमकोडीहिं। परियरिओ सोपंचहि विहरंतो समणकोडीहिं ॥८॥ गामागरनगराइसु | बोहंतो बहुयभवियपुंडरिए। पत्तो खमाधरो सो खमाधरे तंमि पुंडरिए ॥९॥ नमणागयवहुलोए अह वाहजलाउला बहुलसोया । | करमहियदुहियदुहिया समागया महिलिया एगा ॥१०॥ महिमिलियसिरा सा नमिय गणहरं करिय दारियं पुरओ । पभणइ किं पुब्बभवे भयवं! दुक्कयमिमीइ कयं ॥११।। चउचउरनाणउवओगजोगजोइयपयत्थसत्थगणो । भणइ मुणी सुण भद्दे ! जमिमीइ कयं दुक्कयं कम्मं ॥१२॥ असुहाणं कम्माणं जं असुहो चेव जायइ विवागो। नहिरोवियंमि निंबे अंबफलं जायइ कयावि ॥१॥ किंच-सखो पुवकयाणं कम्माणं पावए फलविवागं । अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमित्तं परो होइ॥१४॥तथाहिपुव्वविदेहे हारुब्ब पवरसिरीए अहेसि चंदपुरी। तत्थ धणावहसिट्ठी भूरिधणो धम्मधणबुद्धी॥१५॥ चिइवंदणाइसद्धम्मसंगया | तस्स दुन्नि दइयाओ। चंदसिरी मित्तसिरी एगंतरविहियमजाया ॥ १६ ॥ अन्नदिणे भंजंती मज्जायं मयणपरवसा धणियं । चंदसिरी इंदुजलमइणा पइणा इमं भणिया ॥१७॥ उत्तमकुलुब्भवाणं नय सुयणु मज्जायलंघणं जुत्तं । जलहीविहु सलहिजइ सजियअणवजमजाओ ॥ १८॥ किंच-चलति कुलाचलचक्र मर्यादां लंघयन्ति जलनिधयः। प्रतिपन्नममलमनसां न चलति पुंसां युगांतेऽपि ॥१९॥ तो सा तोसविरहिया अइरोसावेसकलुसियमईया । चलिया विलक्खवयणा मित्तसिरी उवरि
MILIMSSIPAHINIMULEINDRAPARINA
नप सुयणु मज्जायलाधयः । प्रतिपनमामलसिरी उवरि
| ॥४३७॥
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