Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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मेघरथकथा
श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥४५५॥
Acharya Shri Kaip | सिज्झिज्जा ॥२॥" मेघरथकथा त्वियं-इह दीवे पुब्वविदेहमंडणे पुक्खलावईविजये। पुंडरिगिणीपुरीए आसी जिणो घणरहो राया | ॥१॥ पियमइमणोरमाओ तस्स पिया पियमईइ अह जाओ। ओहिजुओ संतिजिणो मेहरहो नाम वरपुत्तो ॥२॥ तस्स पियपिय| मित्ताइ मेहसेणो सुओ कयाइ निवो। पुत्ताइजुओ चिट्ठइ अंतो अंतेउरे जाव ॥३॥ ताव मुसेणा गणिया कुक्कुडहत्था निवं भणह देव !। कस्सवि न कुक्कुडेणं जिप्पइ मह कुक्कुडो एसो ॥४॥ जइ जिप्पइ तो लक्खं दीणाराणं पर्णमि से देमि । देवी मणोरमा अह जंपइ इमिणच्चिय पणेणं ॥५।। एस वरकुक्कुडो मे जुज्झउ इय होउ जपिए रना । ते मुक्का जुझंति य नय जिप्पइ कोवि केणावि ॥६॥ अह जंपइ मेहरहो कि केणं कोऽवि जिप्पइ न ताय । भणइ पह इह भरहे एरवए रयणपुरनयरे॥७॥ दोमित्ताधणवसुदत्तनामया
आसि विविह आरंभा । वसहाइवाहणपरा कूडतुला कूडमाणरया ॥८॥ कूडकयकूडमाणयपरवंचणपत्रणमाणसा कूरा। मिच्छद्दिट्ठी | अदया निस्सीला निचलोहिल्ला ।।९।। एकद्दव्वभिलासा जुज्झिय मरिऊण अट्टझाणेण । जाया तत्थेव करी सुवन्नकूलानईतीरे ॥१०॥ भवियब्वयाइ मिलिया ते जुज्झित्ता मया उवज्झाए । जाया महिसा तत्थवि मिडिय मया मिढिया जाया ॥११॥ पुण जुज्झिय तत्थ मया सरिसबला कुक्कुडा इहुप्पन्ना । पुव्वं व इयाणिपिहु न जिप्पिही कोऽवि केणावि ॥ १२ ।। अह मेहरहो जंपइ न | केवलं पुव्ववेरविवसमणा । जुझंतिमे वराया विज्जाहरधिट्ठियावि तहा ॥१३।। घणरहनिवेण उन्नमिय एगभमुहेरिओ उ मेहरहो।
जंपद भरहवियड्ढे सुवण्णनाभाभिहे णयरे ॥१४॥ रायाऽऽसि गरुडवेगो तस्स सुया चंदसूरनामाणो । ते अनदिणे पत्ता मेरु| गिरिं वंदिउं देवे ॥१५॥ दटुं सागरचंदं चारणसमणं नमेवि पुच्छति। नियपुवभवे साहू साहइ इय धायईसंडे ॥१६॥ एरवए | वज्जपुरेऽभयघोसनिवस्स आसि दुन्नि सुया । विजओ य वेजयंतो तिनिवि ते जइणधम्मरया ॥१७॥ कइयावि अभयघोसो
॥४५५।।
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