Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 541
________________ Shri a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka mein s uri Gyanmandir प्रभावती कथा श्रीदे० चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधी ॥४४३॥ m भवर्णमि अवण्णा पूयाइअणायारो २ तहा भोगो३। दुप्पणिहाणं४ अचियत्ती५ एया आसायणा पंच ॥१॥ तत्थ अवन्नाऽऽसायण पल्हथियदेवपद्विदाणं च । पुडुपुडिपायपसारणदुट्ठासणसेवण जिणग्गे ॥२॥जारिसतारिसवेसो जहा तहा जमि तंमि कालंमि । पूयाइ | कुणइ पुग्नो अणायरासायणा एसा ॥३॥ भोगो तंबोलाई कीरंतो जिणगिहे कुणइऽबस्सं । नाणाइयाण आयस्स सायणं तो तमिह वज्जे ॥४॥ रागेण व दोसेण व मोहेण व दसिया मणोवित्ती। दुपणिहाणं भन्नइ जिणविसए तं न वायव्वं ॥५॥ धरणरणरुयणविगहाति|| रिबंधणरंधणाइ गिहकिरिया। गावीविजवणिजाइ चेइए चउऽणुचियवित्ती ॥६॥" प्रभावतीदेवीकथा त्वियं-चंपाए नयरीए सुवनगारो कुमारनंदित्ति । सो पुण जं जं पिच्छह सुणइ य रूवस्सिणिं कनं ॥१॥ तं तं परिणइ दाउं कणगसए पंच पिंडिया एवं । पंच सया ताहिं समं विलसइ इगथंभपासाए ॥ २ ॥ अह पंचसेलदीवट्टियाओ हासप्पहासदेवीओ। नंदीसरजत्ताए जंतीओ सक्कआएसा ॥३॥ सपइंमि विद्युमालीसुरे चुए से कुमारनंदिस्स । वुग्गाहिउं सरूवं दरिसंति निएवि ताउ इमो॥४॥ पुच्छर काओ तुब्भे? ता विति वयं सुरीउ जइ कजं । तो इज पंचसेले इय भणिय तिरोहिया ताओ।५।। सोऽवि निवं विनविउं पडहं दावेइ सयलनयरंमि । पणसेले नेइ ममं जो से दाहं कणगकोडिं ।।६।। एगो थेरो तं छिविय पडहयं दाउ नंदणाण धणं । पत्थयणभरियवहणो सो चलिओ तेण सह जलहिं ।।७।। गंतुं सुदूर जंपइ जलहिमि तदुन्भवो वडो रुक्खो। एयं विलगिज तुमं पाए एयस्स हुजा तो ॥८॥ इह भारंडा तिपया विहगा एहिंति पंचसेलाओ । सुत्तेसु तेसु एगस्स मज्झ पाए तुम अप्पं ।।९।। बंधिज पडेण दद सो गोसे नीहिही तुमं तत्थ । जलहिजलावतंमि य पडियं पुण भजिही वहणं ॥१०॥ तह कुणइ सुन्नगारो नीओ भारुडपक्षिणा तत्थ । दिट्ठो ताहिं तस्संगमूसुओ ताहि इय वुत्तो॥११॥ इमिणा तणुणा नऽम्हे भुजामो काउ तो तुमं किंपि। अम्गिपवेसाईयं होसु aiIALISAPTAHIKSHARABIAPHIRAIN HAEL ॥४४३॥ For Private And Personal

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