Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रभावती
कथा
श्रीदे० चैत्य श्री धर्म संघाचारविधौ ॥४४९॥
Pimnnaim
जंपइ सूयं ! कीरइ किमज्ज मे वीसु आहारो? ॥७९॥ सूओ जंपइ सामी संतेउरपरियरो अभत्तट्ठी। जं अज्ज पज्जुसवणा तो तुह |साहेमि आहारं ॥८०॥ सो आह साहु तुमए पञ्चमिणं मज्झ सारियं सूत्र!। अज्जुववासो मज्झवि जंपियरो मह परमसडा॥८॥ | तं सूओ साहइ गंतु राइणो सोऽवि भणइ जाणेमि । से सदृत्तं जाणइ धुत्तो पुण वइसगं काउं ॥८२॥ काराइ ठिए एयंमि जारिसे | तारिसे व नहु सुद्धा । मह होइ पज्जुसवणा इय तं मुंचेइ नरनाहो ॥८३॥ दाउं अवंतिदेसं स महप्पा कुणइ तेण खामणयं । भालंकगोवणहा विअरइ वरकणयपदृ च ॥८४॥ तप्पमिद पट्टबद्धा निवा पुरा आसि मउडबद्धत्ति । विचे वरिसारत्ते उदायणो नियपुरं पत्तो ॥८५॥ जे लाभत्थी वणिया समागया तत्थ ववहरणहेउं । तेहिं चिय वसमाणं खायं तं दसपुरं नयरं ॥८६॥ कहावि पक्खियं पोसहं निवो लेइ वीयभयसामी । रयणीइ चरमजामे सुहलेसो इइ विचिंतेह ॥ ८७ ॥ ते घमा गामपुरा विहरइ सिरि-| वीरजिणवरो जत्थ। रायाई ते धन्ना सुगंति जे वीरधम्मकहं ।। ८८ ॥ जे लिंति देसविरहं तप्पयमूलंमि ते उ धनयरा । जे उ पवज्जति वयं ते थुणिमो ते नमसामो॥ ८९ ।। जइ अज्ज एइ वीरो तप्पयमूले गहेमिऽहं दिक्खं । अह तत्थ समोसरिओ गोसे | सिरिवीरजिणनाहो ॥९०॥ सव्विड्डीए राया वंदिय वीरं सुणेवि धम्मकहं । पत्तो नियवासे एवं चित्ते विचिंतेइ ॥११॥ दिक्खत्थी खलु अहयं अभीइपुत्तस्स देमि जइ रजं । संसारनाडयनडो तो एस मइच्चिय कउत्ति ॥९२ ॥ चिंतिय नियजामेए केसिमिहाणे ठवेवि रजभरं । गिण्हइ उदायणनिवो दिक्खं दुविहं तहा सिक्खं ॥९३॥ अंताहाराईहिं तस्सुप्पन्नो कयावि गुरुरोगो ! गुणरयणोदहि दहियं भुंजसु विजेहिं इय भणिओ ॥१४॥ स मुणी तमुग्गरोगं वएसु विगईगएण जावंतो। पत्तो वीयभयपुरे भणिओ मंतीहिं केसिनिवो ॥१५॥ एस तुह माउलो अइनिचिन्नो आगओ सरअत्थी । आह निको देमि अहं नियरजं लेउ लहु एसो ।.९६।। तो
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,४४९॥
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