Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
View full book text
________________
ShriMHERAradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kal
ri Gyanmandir
श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥४२७॥
कहेसि हे जक्खरायवर! ॥ ४२ ॥ एगस्स कए नियजीवियस्स बहुयाउ जीवकोडीओ । दुक्खे ठवंति जे केइ ताण किं सासयं || शशिनृपजीयं? ॥४३|| जेवि मुभूमप्पमुहा तिसत्तखुत्तो करिंसु जीववहं । तेसिपि दुग्गदुग्गइपडणाउ परं न किंपि फलं ॥४४॥ ता जह कथा अम्हं धम्मो न हायइ मणंपि जह व सत्तुबलं । पावइ अपत्तपीडं नियठाणं कुणसु तह तुरियं ॥ ४५ ॥ एवंति भणेऊणं जं जत्तो आगयं तयं तत्थ । मुत्तुं परबलमखिलं गओ सठाणमि जक्खपहू ॥ ४६॥ उदिओदयरायाविहु निचं उस्सग्गकरणउज्जुत्तो। धम्मं काउ विमुद्धं जाओ सुक्खाण आभागी॥४७॥ इय सोउं निवपुत्तो उस्सग्गुप्पन्नगाढपडिबंधो। पच्छा पहुत्तनियबलसमन्निओ नमियमुणिचरणो ॥४८॥ पत्तो नियंमि नयरे गिहिधम्मं पालए निरइयारं । अह सूरप्पहराया वेसावसणेणमभिभूओ ॥ ४९ ॥ अइमजपाणमत्तो रजाइअचिंतगो पहाणेहिं । कारेवि मजपाणं कयावि चत्तो अरनंमि ॥५०॥ ठविओ कुमरो रज्जे तेहिं सुविसुद्धधम्मकम्मपरो । दुकम्मक्खयहेउं उस्सग्गमभिक्खणं कुणइ ॥५१॥ इत्तो सूरप्पहनरनाहो खणमित्तलद्धचेयन्नो । वेरग्गोवगयमणो तावसदिक्खं पवजित्ता ॥५२।। जाओ वंतरदेवो पउत्तओही निएवि नियपुत्तं । रिद्धिसमिद्धं रज पालंतं वसणपरिहीणं ॥५३॥ तो फुरियपबलकोवानलो चिंतिउं समाढत्तो । पिच्छह मह विरहे हयसुयस्स सोगाइरेगत्तं ।। ५४ ॥ मन्ने इमिणच्चिय पावपंकमलिणेण रजतिसिएण । अडवीनिवाडणं मह करावियं विगयलज्जेण ॥५५।। जइविहु सपहुविहीणे रजे रायंतरं पयर्टेति। रजाभिलासिणो | हुंति मंतिणो तहवि नऽवराहो ॥५६॥ ता नत्थि ताण दोसो दोसो एयस्स चेव कुसुयस्स । इणमेव अओ पावं सज्जोऽणज्ज निगिण्हामि | ॥५७। एवं चिंतिउ अंतो पसरंतमहंतअमरिसुक्करिसो । सो वाणवंतरो ससिनिवस्स पासे लहुं पत्तो ॥५८॥ रायावि रजकजाई चिंतिउं विहियदेवगुरुपूओ। एगग्गमणो विजणे काउस्सग्गं समल्लीणो ॥ ५९ ॥ तस्संमुहमचयंतो टुंपि झडत्ति तो पडिनियत्तो। ॥४२७॥
माHITRAP
ill
For Private And Personal
S

Page Navigation
1 ... 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560