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Acharya Shri Kailah
Gyanmandie
गुर्वादिवर्णाः
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श्रीदे० चैत्य श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥३४५॥
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| ५ अष्टाविंशति६श्चतुस्त्रिंशत् ७ एकत्रिंशत् ८ द्वादश९ गुरवो-द्विगुणितरूपाः, नतु संयोगे पूर्वो गुरुरित्यादिलक्षणलक्षिताः वर्णाअक्षराणि, तत्र नमस्कारे द्वितीयपदे द्धाप४ ज्झा प ५ व्यप ६ का प ७ बप्पा प ८ व्वे इति सप्त, अन्ये तु पणासणोत्ति पस्य लघुत्वात् षट् गुरुन् भणंति, आह च-छकूणसेस लहुआ नवकारे अक्खर दुसट्टत्ति, च्छेजात्थ इति क्षमणाश्रमणे त्रयः, ऐर्यापथिक्यां प्रथमपदे च्छा प २ क प ६७८५९ तिट्टीक्क प १७ त्ति प २० टिप २३ ६ प २६ स्सच्छाक्क प २७ स्स त २८ च्छित्त प ३०ल्ली प ३१ म्माग्घाहा प ३२ स्सग्गं इति चतुर्विंशतिः। केचित् ठाणाश्रो हाणंति पंचविंशतितम भणंति ३ । शक्रस्तवे प्रथमपदे त्थु प ४ स्थ प ५ द्धा प ६ त प ९ स्थी प १० त प १४ जो प १६ खु प १७ ग्ग प २० म्म | प २१ म्म प२२ म्म प २३ म्म प २४ म्मकट्टी प २५ प प २६ ट प २८ ना प २९ द्धा प ३० ता प३१ बन्नूव प ३२ क्खव्वात्तिद्धित्ता इत्येकानत्रिंशत् । तथा जे य अईआ सिद्धेत्यादिगाथायां प१द्धा प२ स्सं ३ ट प ४ व्वे इति चत्वारः, उभये मिलिताः सकलशक्रस्तवदंडके त्रयस्त्रिंशत् , केचिच्चतुस्त्रिंशत्तमं विअच्छउमेत्ति च्छकारं मन्यते ४ । चैत्यस्तवदंडके प २ स्सग्गं प३त्ति प ४ ति प ५ कात्ति प६ म्मात्ति प ७ त्ति प ८ ग्गत्ति प ९ द्धा प १३ प्पे १४ ड्ढ प १५ स्सग्गं १६ न स्थ प २१ ड्डु प २२ ग्गे प२४ तच्छा प २७ ट्ठि प ३० ग्गो प ३१ ज प ३२ स्सग्गो प ३३ का प ४२ प्पा इत्येकोनत्रिंशत् , एके तु काउसग्गेत्यत्र सकारस्य लघुत्वं मन्वानाः षट्विंशति भणंति, तथा च-'पणवोमं चउवीसं अउणत्तीसं च पंचतीसा य । गुणतीसं इरियावहिसक्कथयाईसु गुरुवण्णा ॥१॥ नामस्तवदंडके प १ सज्जो प २ म्मत्थ प३ त्तस्सं प७ प्प प ८प्प प ९फ प १० जंज प १२ म्म प १३ ल्लिं प १४ व १५४ १६ द्ध प२० त्थ प २१ त्ति प २२ स्सत्तद्धा प २३
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i ndiHINDIKHITRALIACILIPAHIL-MAILama
MINISTRATI
"ali-Mata
॥३४५॥
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