Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 467
________________ Shri Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shi s uri Gyanmandie N श्रीदे. सुमति कन्याकथा चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥३७०॥ हिय नियविमाणमि । मुगनिमीलियच्छी पडिया धरणीइ ता सुमई ॥५९|| हा किमिणति ससंभमचंदणसित्ता पुणागयसचित्ता। तो एवं सा सुमई तं निवनिवहं भणइ सुमई ॥६०॥ भो! भो! उत्तमनरवरकुलणहयलविमलपुनिममयंका । निमुणेह नरवरिंदा ! विनाति मज्झ एगमणा ॥ ६१॥ जं जंपियं इमीए महाणुभावाइ सक्कदेवीए । तं जायं पच्चक्खं सव्वं मह जाइसरणेण ॥ ६२ ॥ | ता गिहिस्सं दिक्खं संपइ न रमइ मणं मह भवंमि । अणुजाणावेवि तुमे जमागया मह कए सव्वे ॥६३ । तेऽवि भणंति नरिंदा होउ अविग्धं तुहं सुयणु धम्मे। अम्हेहिं अणुनाया पावेसु मणिच्छियं ठाणं ।। ६४ ॥ तो तुट्ठा बलहरिणो सोउं तीए अणुत्तरं चरियं । दिक्खामहिम परमं कारंति असेसनिवसहिया ॥६५॥ सकस्स अग्गमहिसी उ तहय वेसमणअग्गमहिसीओ। पूर्य करिति तीसे न तारिसे को णु पूइज्जा ? ॥६६॥ कन्नासएहि सत्तहिं समन्निया सुब्वयजपासंमि। निक्खंता खायजसा गिण्हइ दुविहं च सा सिक्खं ॥६७॥ इगतीसं सिद्धगुणा झायंती जिणवरे य सुमरंती। पणविहसज्झायपरा बहुमाणा सा मुणिजणंमि॥६८॥ उल्लसियसिपज्झाणानलदहियअसेसकम्मसंताणा । पडिबोहिय भवियजणे सिद्धासुमई अणंतगुणा ।।६९॥ इति हि सुमतिकन्यावृत्तमाकर्ण्य धन्याः!, श्रुतजिनमुनिसिद्धान् विश्वविश्वप्रसिद्धान् । भवजलनिधिसेतून्मोक्षहेतून् समस्तान् , प्रतिदिनमसपलं वंदितुं धत्त यत्नम् ॥७॥इति सुमतिकन्याकथा।। इत्युक्तं चत्वारो वंदनीया इति त्रयोदशं द्वारं, संप्रति 'सरणिज्जति चतुर्दशं द्वारं गाथाद्वितीयपादाढ़ेंनाहइह सुरा य सरणिज्जत्ति । इहशब्दः पूर्वद्वारे संयोजितोऽपि डमरुकमणिन्यायेनात्रापि संबध्यते, ततश्च इहेति संपूर्णचैत्यवंदनायां क्रियमाणायां सुराश्च मुर्यश्चेति 'पुरुषः स्त्रियेत्येकशेषे सुरास्ते चात्र यक्षांबाप्रभृतयः सम्यग्दृष्टिदेवता ज्ञातव्याः,नत्वहतः,तेषां प्राग्वंद| नीयत्वेनोक्तत्वाद् अनुशासकत्वात् स्मारकत्वाच,एते च किमित्याह-सरणिजत्ति,मरणीयास्तद्गुणानुचिंतनोत्कीर्तनादिनोपबृंहणीयाः, M ANIPARAMHITAPAINTHIS ॥३७०॥ For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560