Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 475
________________ Shri Mole in Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ ३७८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir भवणं अलंकियं पासपडिमाए ॥ ३२ ॥ तत्थ य अब्भुयभूयं पूयं कार महाविभूईए। वायावइ आउजे सज्जो सजियमहापूओ ||३३|| गोसे नियपासाए सिरिपास पहुस्स पूइउं पडिमं । सामंत मंतिसुद्धंत कुमर चउरंगबलकलिओ ||३४|| गयखंधगओ सिरिउवरिधरियछत्तो चलंतसियचमरो । कित्तिज्जतो मागहगणेण परमारिहंतुति ||३५|| कयपवयणबहुमाणाण बोहिलाभं जणाण वडूंतो । सब्बिड्डीइ समेओ राया वच्चेइ चेइगिहे || ३६ || विहिणा पूएवि सुपुन्नपुन्नचिइवंदणाह वंदित्ता । सिरिपासपहुं पत्थेइ होसु मह बोहिलाभाय | ॥ ३७ ॥ सुचिरं ईसरराया सिरिजिणवरपत्रयणं पभावित्ता । पास पहुपासगिव्हियपव्वज्जो सुगमणुपत्तो ॥ ३८ ॥ इतीश्वरक्षोणिभृतचरित्रं, निशम्य सम्यग् भविकाः ! पवित्रम् । नामाकृतिद्रव्यसुभावभेदान्, चतुर्विधान् ध्यायत तज्जिनेंद्रान् ॥ ३९ ॥ इती श्वरनरेश्वरकथा ।। उक्तं 'चउह जिण'त्ति पंचदशं द्वारं, एवं च द्वादशद्वारे उक्ता द्वादशाधिकाराः, त्रयोदशचतुर्दशपंचदशेतिद्वारत्रयेऽधिकारिणश्च प्रतिपादिताः । अथ यत्राधिकारे यः स्तूयते तत्प्रतिपादनाय गाथात्रयमाह पढमहिगारे वंदे भावजिणे बीययमि दव्वजिणे । इगचेइय ठेवणजिणे तइय चउत्थंमि नामजिणे ॥ ३२ ॥ तिहुअण ठेवणजिणे पुण पंचमए विहरमाणजिण छट्ठे । सत्तमए सुयनाणं अट्टमए सव्वसिद्धथुई ||३३|| तित्थाविवीरथुई नवमे दसमे य उज्जयंतथुई। अट्ठावयाइ इगदसि सुदिट्ठिसुरसुमरणा चरिमे ॥ ३४ ॥ प्रथमे-आद्ये शक्रस्तवरूपेऽधिकारे - स्तोतव्यविशेषस्थाने वंदे - सद्भूतगुणोत्कीर्त्तनेन स्तवीमीति, भावजिनान्-भावाईतश्चतुस्त्रिशदतिशययादिमध्वमर्हद्भावं प्रासानुत्पन्नकेवलज्ञानान् समवसरणस्थांस्तीर्थकृत इत्यर्थः, तथैव संपूर्णमर्हद्भावभावात्, भणितं च'भावजिणा समवसरणत्थ'त्ति १, तथा द्वितीये 'जे अ अईय'त्ति गाथालक्षणेऽधिकारे वंदे इति सर्वत्रापि योज्यं, द्रव्यजिनान् For Private And Personal अधिकारविषयः ॥३७८ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560