Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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Shri Meb
श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौ
॥३६२॥
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इमं समरस असयलबलो । वर्जतविजयढक्को पत्तो लहु तस्स पासंमि ॥ ४३ ॥ तो सो अजुज्झ सज्जो रणसअं पिक्खिऊण निवपुत्तं । खुद्धो विमुतु सव्वं झत्ति पलाणो चडिय तुरयं ॥ ४४ ॥ अह गहिउं रिउलच्छि हत्थे पत्तो कुसग्गनयरंमि । सुट्ठो विजयनरिंदो जुवरायपयंमि तं ठवइ || ४५|| कइयावि महिंदजरेण परिगयं अप्पयं मुणिय राया । तं ठाविय नियरज्जे एवं अणुसासणं कुणइ || ४६ ॥ वच्छ ! तुमं रज्जमिमं पालिञ्जसु तह कहंपि सयकालं । जह मह न देह दोसं सहायकुडिलो खलो लोओ ||४७॥ अन्नायसहावेणं देसंतरिओ निवो कओ रन्ना । इय जंपिरं जणमिमं इहरा को वारिउं सक्को १ ॥ ४८ ॥ परिभाविजसु सययं रजं च कुलं च नायमग्गं च । धम्मं च पुवपुरिसकमं च किं सुबहुभणिएण ? ||४९ ॥ इय तं सिक्खविऊणं परलोयपहं गओ विजयदेवो । सोगाउलेण तेणं विहिओ से देहसकारो || ५०॥ कमसो अ अप्पसोगो धम्महिगारे जणं कुणइ अकरं । वंदेह जिणे पालइ रजं नीईइ सिद्धनिवो ॥ ५१ ॥ इत्तो सो धम्मजसो पत्तो वीय भयनयरमह तत्थ । जं जं करेइ किरियं सा सा से बहुफला होइ ॥ ५२॥ यतः - अइगरुयपुन्नपन्भारपरिगया | जे हवं ति इह पुरिसा । करगोयरं उर्विति तेसिं जह तह समिद्धि ओ ॥ ५३ ॥ तविवरीया पुण गुरुसमिद्धिजुत्तावि जंति दोगच्चं । ववसायं च कुणंता लहंति मरणं अणस्थं च ॥ ५४ ॥ अह रायसुओ नियरजसुत्थयं काउ सरिय चिरमेरं । सविडीए पत्तो महुमासे कोसलपुरीए || ५५ || एवं चिय सिट्ठिसुओ तो ते दिंता मणिच्छियं दाणं । लोएण पुजमाणा नियनियभवणं अणुपविट्ठा || ५६ || तुट्टा अम्मापियरो वद्धावणयं पयट्टियं नयरे । सवत्थवि विथरिओ अक्खलिओ तेसि जसपसरो ॥ ५७ ॥ अह अवसरंमि एत्थ संगया सिद्धदेवधम्मजसा । अकहिंसु हरिसियमणा पुव्वुत्तं निययवृत्तंतं ॥ ५८ ॥ तो भगइ निवइतणओ मित्त ! मए निच्छियं इमं हियए । पुत्रं निमित्तमिकं मणवंछियअत्थसिद्धीए ॥ ५९ ॥ ता तं चैव य पुत्रं जहा जहा जाइ परमवित्थारं । तह तह
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ब्रह्मदत्तकथा
॥३६१।।

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