Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 461
________________ Shri Man Aradhana Kendra श्रीदेο चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥३६४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir जिए उदिने । सुवि चित्तजयपरो कहं अकओ न वहिहिह ? ॥९५॥ किंच - विभूसा इत्थिसंसग्गी, पणीयं रसभोयणं । नरसतगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा ।। ९६ ।। ता सवहावि धभाण चेत्र रसचागवासणा होइ । जित्ते इमंमि रसणिदियंपि अवलं कियं चैव ॥ ९७ ॥ अबले य तंमि पायं सवेसिं इंदंदियाण अबलतं । दट्ठवं तप्पञ्चइयमेव जं तेसि सामत्थं ।। ९८ ।। किंचअकखाण रसणी कंमाण मोहणी तह वयाण बंभवयं । गुत्तीण य मणगुती चउरोऽवि दुहेण जिप्पंति ॥ ९९||" ता निश्चला हविजह पत्थुयसद्धम्मकम्मविसयंमि । तेऽवि तहत्ति पडिच्छंति सीसवीसंतकरकमला || १०० || ता सूरदेवसिद्धी गिरिधम्म गहिय नमिय ते मुणिणो । पत्तो नियंमि गेहे अन्नत्थ य विहरिया गुरुणो || १०१ ॥ किच्चिरकालं बाहिं विहरिय पत्ता तहिं पुणो गुरुणो । तत्थेगेणं मुणिणा षडिवन्नं अणसणं विहिणा ॥ १०२ ॥ तं नंतुं गच्छन्तं राईसरपमुहबहुजणं ददतुं । जिणपवयणपडिकूलो पुरोहिओ भणइ समरनिवं ॥१०३॥ देव! महंतमजुत्तं पारद्धं इत्थ सेयभिक्खुहिं । राजा-नणु पयइउवसमीहिं इमेहिं किं कीरह अजुत्तं ? ॥ १०४ ॥ पुरो- एगो मुणी अकाले सन्नासेणं करेइ इह कालं । राजा-तं निस्सेयसन्भुदयकारणं गिजए सत्थे ॥ १०५॥ तथाहि - द्वावेव पुरुषौ लोके, चंद्रमण्डलभेदिनौ । परिव्राड्योगयुक्तश्च, सूरवाभिमुखो हतः ॥ १०६ ॥ ता इह किंपि अजुत्तं न अत्थि पुरो-नणु द किंपि उवघायं । मह वयणं मन्निस्सह इय भणिय ठिओ स मोणेण ॥ १०७॥ अह निवपुत्तो सुत्तो डक्को रयणीइ कसिण सप्पेण । मुको नरिंदविंदारएहिं नणु कालडक्कुत्ति ।। १०८ ।। गुरुसोयभारविहुरो राया वृत्तो पुरोहिएणेवं । तं देव ! अजुत्तमिणं जं वो कहियं मए आसि ||१०९॥ जइ पुण अजषि एए निद्वाडसि समणगे सदेसाओ । ता तुह सुयस्स रक्खा काविहु कइयावि किर होइ ॥ ११०॥ तं सोउं मूढेणं नरवइणा तलबरो समाइट्ठो । लहु गंतु इमे समणे नीहारसु मज्झ देसाओ ॥ १११ ॥ जमपुरिससरिस - For Private And Personal ब्रह्मदत्तकथा ॥३६४॥

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